शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

'प्रेम मन से देह तक

'प्रेम'
एक लम्बा अंतराल हो गया,
हमारा संवाद हुए,
यक़ीनन, तुम्हे याद नहीं होउंगी मैं,
पर मुझे याद हो तुम,
तुम्हारी नीली आँखें,
शरारती मुस्कान,
'तुम्हारा' मुझे छुप छुप कर देखना,
सब याद है मुझे,
प्रेम के उन चंद सालों में
पूरी जिंदगी जी ली मैंने,
'प्रेम' सुनने में लफ्ज़ भर,
जिओ, तो पूरी जिंदगी बदल जाती है,
तुम चाहते थे, 'पूर्ण समर्पण'
और मैं, 'सम्पूर्ण व्यक्तित्व',
तुम दिल से देह तक जाना चाहते थे,
और 'मैं' दिल से आत्मा तक,
तुम्हारा लक्ष्य 'मेरी देह'
 'मेरा', ' तुम्हारा सामीप्य',
मेरे लिए प्रेम, जन्मों का रिश्ता,
तुम्हारे लिए, चंद पलों का सुख,
परन्तु अपने प्रेम के वशीभूत मैं,
शनैः शनैः घुलती रही,
तुम्हारे प्रेम में,
'जानती थी' उस पार गहन अन्धकार है,
'फिर भी'
तुम्हारे लिए, खुद को बिखेरना,
मंजूर कर लिया मैंने,
'और एक दिन
तुम जीत ही गए, 'मेरी देह'
और मैं हार गयी, 'अपना मन'
'फिर'
जैसे की अमूनन होता है,
तुम्हारा औचित्य पूरा हो गया,
'और तुम'
निकल पड़े एक नए लक्ष्य की तलाश में,
'और मैंने'
उन लम्हों को समेट कर
अपने आँचल में टांक लिए,
रात होते ही 'मेरा आँचल',
आसमां ओढ़ लेता है,
'मैं',
हर सितारे में निहारती हूँ तुम्हे,
रात से लेकर सुबह तक.....

अनीता मौर्या  

2 टिप्‍पणियां:

सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..