tag:blogger.com,1999:blog-4613947093213089942024-03-13T07:08:26.929+05:30आ सखी चुगली करेंसखियों की बातें दिल से दिमाग तक...Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.comBlogger115125tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-36527661306188741362020-02-20T15:10:00.001+05:302020-02-20T15:10:23.877+05:30हरितालिका तीज<div>हरी तालिका तीज</div><div>सुहाग अम्बे गौरी हम सब को दीजौ सुहाग।।</div><div>हरितालिका तीज की अलग ही रौनक होती है। 🥰</div><div>साज श्रृंगार नए वस्त्र जेवर जेवरात आलता महावर आंखों में काजल मेंहदी चूड़ियां।😍😍</div><div>वैसे तो तीज कई है । पर हरतालिका सबसे कठिन मानी जाती है। तीज के एक दिन पहले नहा - खा किया जाता है। इसमें व्रती सुबह बाल धोकर स्नान करती है । सर धोने के लिए तुलसी के चबूतरे से थोड़ी मिट्टी लेकर बाल धोए जाते हैं। उस दिन बिल्कुल सात्विक एवम् सुपाच्य भोजन २ बार ही किया जाता है। शायद ये नियम अगले दिन के कठिन व्रत के लिए शरीर को तैयार करने के लिए बनाया गया होगा। </div><div>तीज में निर्जला व्रत लेकर मिट्टी से पार्थिव शिव, पार्वती, गणेश, नंदी, सर्प ,गण बनाए जाते हैं । उनकी अभिशेक पूजा दूध , दही घी शहद शक्कर से की जाती है। बेलपत्र भंग धतूरा इत्र गुलाल धतूरा आक का विशेष महत्व है इस पूजा में।प्रसाद पकवान के लिए खजूर , पिडिकिया(गुजिया) मीठी एवम् सादी पूड़ी एवम् सत्तू बनाया जाता है। </div><div>अंकुरित चने का भी महत्व है। पूजा में उपयोग किया जाता है।</div><div>हर महिला को अंकुरण ( मां बनने) की लालसा होती है।</div><div>बांस से बने डलिया में गौरी जी के लिए सारे श्रृंगार का सामान एवम् मौसमी फल एवम् पकवान सजाए जाते हैं । </div><div>ये शिव एवम् पार्वती के मिलन की रात है । इसी व्रत के प्रभाव से गौरी को शिव मिले। अखंड सौभाग्य मिला।</div><div>तृतीया की सुबह सूर्योदय से पहले गौरी जी की विदाई(विसर्जन) होती है, फिर परायण किया जाता है। अगले वर्ष फिर से मनाने की कामना के साथ</div><div>लेखिका- ऊषा मुकेश<br><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div>निर्मला महेश्वरी</div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-16417058458031741342020-02-20T11:27:00.001+05:302020-02-20T11:27:42.171+05:30गणगौर<div>गणगौर<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div><div>वैसे तो सभी त्योहारों का बहुत महत्व है। मैं सभी त्योहारों में बहुत खुशी से हिस्सा लेती हूं।लेकिन गणगोर के त्यौहार का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता है।इस दिन हम सभी सहेलियां मिलकर पार्टी करते हैं। गवार और ईसर बनते हैं।गीत गाते हैं नृत्य करते हैं ,गणगौर का त्योहार।</div><div>चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर का त्योहार मनाया जाता है। वैसे तो इसे देश में अनेक स्थानों पर मनाया जाता है परंतु राजस्थान में इस त्योहार की रौनक अनोखी होती है। लेकिन ऐसा नहीं है कि राजस्थान के अलावा दूसरी जगह इस त्यौहार की रौनक नहीं है।सूरत में भी इस त्यौहार को हर्षोल्लास से मनाया जाता है।गणगौर के पूजन की तैयारियां होली के दूसरे दिन से शुरू होती हैं।रंगों के पर्व से पूजन प्रारंभ होने का कारण यह है कि जिस प्रकार रंग जीवन में खुशियों का प्रतीक माने जाते हैं, उसी प्रकार गणगौर सौभाग्य व सुख प्राप्ति का त्योहार है। ईसर-गणगौर का पूजन कर कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर तथा नवविवाहिताएं अखंड सौभाग्य का वरदान मांगती हैं।</div><div><br></div><div>पौराणिक मान्यता के अनुसार, गणगौर पूजन के माध्यम से मां पार्वती द्वारा की गई तपस्या व पूजन का अनुसरण किया जाता है। उन्होंने शिवजी की प्राप्ति के लिए घोर तप किया था। उसके बाद उन्हें पति रूप में पाया था।</div><div><br></div><div>गणगौर पूजन के दिन गणगौर को प्रसाद चढ़ाया जाता है। महिलाओं और बच्चियों द्वारा ही यह प्रसाद ग्रहण किया जाता है। वहीं, पुरुषों के लिए इसका निषेध है। इसका क्या कारण है ?</div><div>चूंकि गणगौर मुख्यत: महिलाओं का त्योहार है। यह सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए अथवा पति के दीर्घ जीवन के लिए किया जाता है। प्रसाद को इस पूजन का फल समझा जाता है। इसलिए इसे ग्रहण करने का अधिकार सिर्फ महिलाओं को ही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह पुरुषों को नहीं देना चाहिए। </div><div>यूं मनाया जाता है</div><div><br></div><div>गणगौर का पर्व सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। उत्सव प्रारंभ होने के साथ ही महिलाएं हाथों और पैरों को मेहंदी से सजाती हैं। इसके बाद सोलह श्रृंगार के साथ गवर माता को पूजती हैं। गाती-बजाती स्त्रियां होली की राख अपने घर ले जाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाई जाती हैं। पूजन के स्थान पर दीवार पर ईसर और गवरी के भव्य चित्र अंकित कर दिए जाते हैं। ईसर के सामने गवरी हाथ जोड़े बैठी रहती है। ईसरजी काली दाढ़ी और राजसी पोशाक में तेजस्वी पुरुष के रूप में अंकित किए जाते हैं। मिट्टी की पिंडियों की पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोली कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं। दीवार पर सोलह बिंदियां कुंकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की रोज लगाई जाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की वस्तुएं हैं और सुहाग का प्रतीक भी! महादेव को पूजती कुंआरी कन्याएं मनचाहे वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ सुसज्जित हाथियों, घोड़ों का जुलूस और गणगौर की सवारी निकलती है, जो आकर्षण का केंद्र जाती हैं।</div><div>लेखिका - नीलम पुरोहित</div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-28437961346772679702020-02-20T11:26:00.001+05:302020-02-20T11:26:05.168+05:30गणगौर<div>गणगौर<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div><div><br></div><div>हिन्दू समाज में चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल स्त्रियों के लिए ही होता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। स्त्रियाँ नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं। </div><div><br></div><div>गणगौर पर्व कब मनाएँ : - </div><div>यह पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित बालिकाएँ अर्थात नवविवाहिताएँ प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न करने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है। </div><div><br></div><div>गणगौर व्रत कैसे करें :- </div><div>* चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। </div><div>* इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए। </div><div>* इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है। </div><div>* जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए। </div><div>* गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएँ जैसे काँच की चूड़ियाँ, सिंदूर, महावर, मेहँदी,टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं। </div><div>* सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है। </div><div>* इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है। </div><div>* भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है। </div><div>* कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी माँग भरनी चाहिए। </div><div>* कुँआरी कन्याओं को चाहिए कि वे गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। </div><div>* चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएँ। </div><div>* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएँ। </div><div>* इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएँ और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें। </div><div>* इसी दिन शाम को उपवास भी छोड़ा जाता है। लेखिका- मोनिका मधु पंचारिया </div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-69823698270325480962020-02-20T11:21:00.001+05:302020-02-20T11:21:58.815+05:30महा छठ<div>महा छठ पर्व</div><div> मैं आज आपलोगो के सामने बिहार ,यूपी ,झारखंड और अब विदेशों में भी मनाया जानेवाला महापर्व छठ पूजा की महत्ता को लेकर उपस्थित हु।</div><div>बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाला महापर्व है। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है।छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की सुख सुबिधाये करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्ति की पूजा नही होती है।ये प्राकृतिक पूजा होती है।सारा वातावरण छठी माँ के गीत से गूंज उठता है।घर,गली और मोहल्ले भक्तिमय गीत में घुल जाता है।</div><div><br></div><div>त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। पहला नहाय खाय,फिर खरना, उसके कल होकर डूबते सूर्य को अरग दिया जाता है।फिर कल सुबह सूर्योदय को अरग दिया जाता है।उसके बाद पारन के साथ छठ पूजा की समाप्ति होती है।प्रसाद के रूप में खीर,रोटी,ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाये जाते है।साथ ही ऋतुफल भी शामिल हित है।इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक आमतौर पर महिलाएं होती हैं। जो महिला इस पर्व को करती है उन्हें परवैतिन कहा जाता है।हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री - पुरुष - बुढ़े - जवान सभी लोग करते हैं।</div><div>जय छठी मैया🙏🙏🙏🙏🙏</div><div>मैंने नहाय खाय से सूर्योदय अरग तक कि फ़ोटो लगाई है।</div><div>लेखिका- रागिनी सिन्हा<br><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-35644805661802257582020-02-20T11:17:00.001+05:302020-02-20T11:17:15.948+05:30महा छठ पर्व बिहार<div><br></div><div><br></div><div>बिहार का छठ पर्व</div><div><br></div><div>हमारें बिहार का मशहूर पर्व छठ है जिसें हम बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं और पूजा में पूरें मन से संलग्न हो जातें हैं।मैं तों बचपन से ही अपनें घर और शादी के बाद ससुराल में छठ की पूजा देखतीं आ रही और पूरें मन से इस पूजा में सलंग्न रही हूं।</div><div>छठ पर्व हमारें बिहार का ही नहीं बल्कि पूरे भारत में मनाया जानें वाला एक मुख्य त्योहार बन गया है। यह पर्व वैदिक काल से ही चला आ रहा है और बिहार की संस्कृति बन चुका है। यह चार दिनों तक चलने वाला पावन व कठिन पर्व है जिसमें भगवान भास्कर की आराधना की जाती है।यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है चैत्र और कार्तिक माह में।इस पर्व में पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। नहाय-खाय के दिन से छठ पूजा की शुरुआत होती है। दूसरें दिन खरना की पूजा होती है जिसमें व्रती सारा दिन उपवास कर शाम में रोटी और गुड़ की खीर का भोग लगातें हैं और पुनः 36 घंटे का उपवास शुरू करतें।तीसरे दिन शाम में किसी नदी ,तालाब में डूबतें सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।</div><div>छठव्रती द्वारा चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। </div><div> पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण छठ पर्व बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है और लोग मिलजुल कर इसें पूरा करतें हैं।</div><div> छठ पर्व में खरना पूजा से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। लोग सेवा भाव मन में लिए पूर्ण रूपेण एक-दूसरें की मदद करतें हैं। छठ पर्व भक्ति भाव से कियें गए सामूहिक कर्म का भव्य प्रदर्शन है।</div><div>इस पूजा में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है ,सभी इस पर्व को निष्ठा से करतें हैं। समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है।इस पर्व का उद्देश्य सूर्य से अपनापन और निकटता को महसूस करना है। सूर्य को जल अर्पित करने का अर्थ है कि हम संपूर्ण हृदय से आपके (सूर्य के) आभारी हैं और यह भावना प्रेम से उत्पन्न हुई है। इसमें दूध से भी अर्घ्य देते हैं। दूध पवित्रता का प्रतीक है। दूध को पानी के साथ अर्पित किया जाना इस बात को दर्शाता है कि हमारा मन और हृदय पवित्र बना रहे ।</div><div><br></div><div>जय छठी मैया 🙏🙏</div><div>लेखिका - अंजना सिंह<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-76182289385776071002020-02-20T11:11:00.001+05:302020-02-20T11:11:04.660+05:30मकर संक्रांति, खिचड़ी<div>भारत का हर प्रान्त त्यौहार से भरपूर है,मैं बिहार से हूं, बिहार में मकर संक्रांति से पर्व की शुरुआत होती है। यह संक्राति भी भारत के हर राज्य में कई नाम से मनाई जाती है पर बिहार में इसे खिचड़ी भी कहते है।</div><div><br></div><div> यह दिन सूर्योपासना का भी है,सुबह नहा धोकर पूरा परिवार दान की सामग्री में हाथ लगाता है,यह दान चावल दाल,हल्दी आलू तिल के लड्डू और कुछ पैसों का होता है। </div><div>फिर आरम्भ होता है नया चुड़ा के साथ खूब प्रेम से जमाई दही,आलू गोभी की सब्जी धनिया पत्ता की चटनी, मुरमुरे और तिल के लड्डू,या फिर तिलकुट।</div><div> सब परिवार बहुत प्रेम से खाते है, यह भोजन खाने के बाद पूरे दिन भूख नही लगती दिन भर धूप में बैठकर जाड़ा के उतार चढ़ाव का अंदाज लगाया जाता है।</div><div><br></div><div> शाम होते खिचड़ी की तैयारी।आज की खिचड़ी ऐसी वैसी खिचड़ी नही"दही पापड़ घी अचार</div><div>खिचड़ी के है चार यार"</div><div> </div><div>मतलब शाही खिचड़ी।मौसमी सब्जियां भी पड़ती है,गोभी मटर धनिया पत्ता।और आलू का चोखा बिहार के खाने की जान है।</div><div> यह दिन से नए कार्य की शुरुआत होती है। शादी ब्याह की तैयारी चलती है।तेज ठंढ से रुका कारोबार चल पड़ता है।</div><div>लेखिका- भारती सिंह<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-76734875104364588082020-02-20T11:08:00.001+05:302020-02-20T11:08:26.064+05:30बसन्त पंचमीवसंत पंचमी पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है, इस दिन ज्ञान की देवी माँ शारदे की पूजा अर्चना करने के साथ साथ ही पीले वस्त्र धारण करने और,अबीर गुलाल के साथ ही होली के गीतों की भी शुरुआत हो जाती है। बच्चों से पीले चावल पे स्वस्तिक बनवा के उन्हें अक्षर ज्ञान के लिए माँ से विनती की जाती है। इस समय सम्पूर्ण धरती हरे रंग पे पीली चुनरी ओढ़ के इतराती और इठलाती है।🌹🌹 जय माँ शारदे आप हम सभी को यह ज्ञान दे,हम मानव सदा सर्वदा रखें आपका ध्यान और बना रहे आपका ये वसंती त्यौहार🌹🌹<div>लेखिका- रश्मि सिंह<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-69651659577358342702020-02-20T11:01:00.001+05:302020-02-20T11:01:45.486+05:30महाछठ पर्व , बिहार<div>महा छठ पर्व</div><div>मैं बात करूंगी बिहार में मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्योहार महापर्व छठ की।</div><div> यह चार दिवसीय उत्सव हैं ।</div><div>चतुर्थी - नहाए खाए कद्दू भात।</div><div>पंचमी - निर्जला व्रत,शाम को गुड़ की खीर रोटी से खरना।</div><div> षष्ठी- निर्जला व्रत रख के शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य।</div><div> सप्तमी - उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व की समाप्ति </div><div>छठ पूजा को बिहारी लोगों की पहचान के रूप में देखा जाता है ।सही भी है बिहारी लोग देश के किसी भी कोने में चले जाएँ भाषा और बोलने के अंदाज बदल ले, पर छठी मैया की भक्ति नहीं छोड़ पाते।</div><div>देश विदेश सभी जगहों के लोगों ने खुले दिल से इसका स्वागत किया है क्योंकि यह प्रकृति की पूजा है, सूर्य की, नदियों की पूजा है।</div><div> प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है, महत्व को दर्शाता है ।इसमें घाटों( नदी का किनारा) की सफाई की जाती है ,सजावट की जाती है।</div><div> इसमें सिर्फ उगते सूर्य की हीं नहीं बल्कि डूबते सूर्य भी पूजा की जाती है। कालांतर में इसमें मूर्ति पूजा भी होने लगी है। भगवान सूर्य और छठी मैया (सूर्यदेव की बहन )की मूर्ति बनाई जाने लगी है। पर इसका मूल वही है।</div><div><br></div><div>सूरज तेरी रोशनी जीने का आधार।</div><div>रोशन ये ब्रह्मांड है माने हम उपकार ।।</div><div>जीवन यह पावन बने ज्यों गंगा का नीर।</div><div>छठी मैया पूजन तुम्हे जाए नदिया तीर।।</div><div><br></div><div>लेखिका - रजनी श्री वास्तव , पटना<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div><div>बहुत प्राचीन समय की बात है। भारत के किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी। वह हर शीतलाष्टमी के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती थी। भोग लगाने के बाद ही वह प्रसाद ग्रहण करती थी। गांव में और कोई व्यक्ति शीतला माता का पूजन नहीं करता था।</div><div><br></div><div>एक दिन गांव में आग लग गई। काफी देर बाद जब आग शांत हुई तो लोगों ने देखा, सबके घर जल गए लेकिन बुढ़िया माई का घर सुरक्षित है। यह देखकर सब लोग उसके घर गए और पूछने लगे, माई ये चमत्कार कैसे हुआ? सबके घर जल गए लेकिन तुम्हारा घर सुरक्षित कैसे बच गया?</div><div><br></div><div>बुढ़िया माई बोली, मैं बास्योड़ा के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती हूं और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हूं। माता के प्रताप से ही मेरा घर सुरक्षित बच गया।</div><div><br></div><div>गांव के लोग शीतला माता की यह अद्भुत कृपा देखकर चकित रह गए। बुढ़िया माई ने उन्हें बताया कि हर साल शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करना चाहिए, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाना चाहिए और पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।</div><div><br></div><div>पूरी बात सुनकर लोगों ने भी निश्चय किया कि वे हर शीतलाष्टमी पर मां शीतला का पूजन करेंगे, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करेंगे।</div><div><br></div><div>कथा का मर्म</div><div>इस कथा का मर्म भी बहुत गहरा है। भारत की जलवायु और खासतौर से राजस्थान की जलवायु गर्म है। गर्मी कई रोग पैदा करती है। शीतला माई शीतलता की देवी हैं।</div><div><br></div><div>कथा का यह संदेश है कि शीतला माई का पूजन करने से तन, मन और जीवन में शीतलता आती है, मनुष्य गर्मी, द्वेष, विकार और तनावों से दूर रहता है। माता के हाथ में झाड़ू भी है जो स्वच्छता और सफाई का संदेश देती है।</div><div><br></div><div>गर्म मौसम के अनुसार स्वयं की दिनचर्या व खानपान में बदलाव करने से ही जीवन स्वस्थ रह सकता है। इस प्रकार शीतला माई ठंडे पकवानों के जरिए सद्बुद्धि, स्वास्थ्य, सजगता, स्वच्छता और पर्यावरण का संदेश देने वाली देवी भी हैं।</div><div>लेखिका- कुसुम थानवी <br><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div>संध्या ओझा</div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-57109094001960887482020-02-20T10:42:00.001+05:302020-02-20T10:42:06.981+05:30अक्षय तृतीया<div>अक्षय तृतीया</div><div><br></div><div>हमारे राजस्थान में अक्षय तृतीया </div><div>हम फलोदी वाले आखा तीज बोलते हैं 😃</div><div><br></div><div>अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई ।</div><div><br></div><div>अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ , ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। उस के बाद फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है, ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन साबूत अनाज अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, सोने का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।</div><div><br></div><div>इस तयौहार में साबुत अनाज का खाना बनता है </div><div>ओखली और मूसल की सहायता से गेहूं को कुटते है जब तक कि गेहूं का छिलका उतरने न लग जाए ।।</div><div>गेहूं मूँग का खीच और ग्वार फली बडी की सब्जी और दही का रायता बनाया जाता है ।।</div><div>ये त्यौहार वैशाख शुक्ल द्वितीया और तृतीया दो दिन मनाया जाता है।।</div><div>सभी एक दूसरे के घर खीच खाने जाते है, और पतंग भी उडाई जाती है ।।</div><div>घर के पुरूष छत पर पतंग बाजी करते हैं ,, मे भी शादी के पहले तक पतंग बाजी करती थी, सभी लोग मुझ से कहते की तूम क्यो लडको की तरह पतंग बाजी करती है ।।</div><div><br></div><div>मे पतंग बाजी मे लडको को भी पीछे छोड़ दिया करती थी 😜</div><div>आसमान में रंग बिरंगी पतंगो से भरा हुआ होता है </div><div><br></div><div>लेखिका- माधुरी गुचिया<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-8985396571408277962020-02-20T10:39:00.001+05:302020-02-20T10:39:56.421+05:30गुड़ी पड़वा<div>गुड़ी पड़वा</div><div>आज का विषय बहुत ही रोचक है। हमारी सनातन संस्कृति को और अच्छी तरह जानने के लिए उपयोगी भी है।वैसे तो हमारे भारतवर्ष में हर दिन त्यौहार ही होता है पर कुछ विशेष दिन होते हैं जो सदियों से मनाए जा रहे हैं। हमारे हिन्दू नववर्ष का पहला दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा होता है।इस दिन विक्रम संवत्सर का आरंभ माना जाता है।कहते हैं इसी दिन ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।इसी दिन चैत्र नवरात्रि आरंभ होते हैं।</div><div>इस दिन को वर्ष प्रतिपदा नवसंवत्सर या गुड़ी पाड़वा भी कहते हैं।गुड़ी का अर्थ "विजय पताका"होता है।मान्यता है कि शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से शकों का पराभव किया था।इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।चैत्र के महीने में ही वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती है।</div><div>महाराष्ट्र में यह पर्व गुड़ी पाड़वा के रूप में मनाया जाता है।इस दिन महाराष्ट्र के प्रत्येक घर के द्वार पर या छत पर गुड़ी उभारकर उसकी पूजा की जाती है।इसके लिए बांस की लम्बी काठी के एक छोर पर जरी का लाल या केसरिया कपड़ा लगाते हैं। फिर उस पर शक्कर के बतासों की माला,आम के पत्ते,नीम के पत्ते, फूलों का हार ये सब बांधकर उस पर तांबे का कलश उल्टा रखते हैं। फिर ये काठी दरवाजे पर या छत पर बांध देते हैं।तांबे का कलश उल्टा लगाने के पीछे मान्यता है कि ब्रम्हांड की सारी सकारात्मक ऊर्जा को ये तांबे का कलश आकर्षित करके पृथ्वी में भेजता है। अर्थात घर की नींव में सकारात्मक ऊर्जा जाने से और मजबूत होती है।इसकी विधिवत पूजा कर नैवेद्य अर्पित किया जाता है।घर के आंगन में रंगोली बनाते हैं।द्वार पर आम के पत्ते और हजारे के फूलों की बंदनवार लगाते हैं।ये सभी कार्य सूर्योदय के तुरंत बाद में किए जाते हैं।संध्या समय सूर्यास्त पूर्व ही ये गुड़ी उतारकर प्रसाद सबको बांट देते हैं।</div><div>नैवेद्य के लिए पूरण पोळी बनाते हैं जिसमें चना दाल,गुड़,नमक,नीम के फूल,इमली और कच्चा आम होता है।</div><div>गुड़ मिठास के लिए,नीम के फूल कड़वाहट के लिए,इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होता है।आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है पर महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है।यह दिन वर्ष के साढ़े तीन मुहुर्त में से एक मुहुर्त भी माना जाता है।इस दिन कोई भी शुभ कार्य शुरू करें तो उसका फल बहुत बढ़िया मिलता है।</div><div>तो सखियों ऐसा देश है मेरा जहां हर उत्सव के पीछे एक कहानी है। मैं हूं तो मारवाड़ी पर विवाह के बाद महाराष्ट्र में आ गई तो यहां के उत्सव यहीं के अनुसार मनाती हूं।</div><div>लेखिका- भारती पँचारिया शर्मा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div>नीम की टहनी की पूजा की जाती हैं। पूजा में गाय के गोबर से एक घेरा बनाते हैं जिसमे दुध और पानी की बराबर मात्रा मिलाते हैं। पूजा में सत्तू, निम्बू, नीम, लाल और सफ़ेद मोती, दिए की लॊ की परछाई देखकर सात बार बोलते हैं नीमडी में दिखो देखो जेडो ठिठो । चाँद के आने पर पूजा चाँद की पूजा की जाती हैं बाद में सत्तू जो की घी, चीनी, बेसन ,चावल , आटा को मिला कर बनाया जाता हैं , कच्चे दुध में जावन देकर निम्बू और चीनी मिला कर फेदड और फल के साथ व्रत का पारण किया जाता हैं। इस दिन महिलाये अपने पीहर ही रहती है।<div>लेखिका- सुचरिता कल्ला</div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-14258692397754635912020-02-11T08:15:00.001+05:302020-02-11T08:17:34.929+05:30गुड़ी पड़वा<div>गुड़ी पड़वा</div><div> हमारी सनातन संस्कृति को और अच्छी तरह जानने के लिए यह त्यौहार उपयोगी है।वैसे तो हमारे भारतवर्ष में हर दिन त्यौहार ही होता है पर कुछ विशेष दिन होते हैं जो सदियों से मनाए जा रहे हैं। हमारे हिन्दू नववर्ष का पहला दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा होता है।इस दिन विक्रम संवत्सर का आरंभ माना जाता है।कहते हैं इसी दिन ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।इसी दिन चैत्र नवरात्रि आरंभ होते हैं।<br></div><div>इस दिन को वर्ष प्रतिपदा नवसंवत्सर या गुड़ी पाड़वा भी कहते हैं।गुड़ी का अर्थ "विजय पताका"होता है।मान्यता है कि शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से शकों का पराभव किया था।इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।चैत्र के महीने में ही वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती है।</div><div>महाराष्ट्र में यह पर्व गुड़ी पाड़वा के रूप में मनाया जाता है।इस दिन महाराष्ट्र के प्रत्येक घर के द्वार पर या छत पर गुड़ी उभारकर उसकी पूजा की जाती है।इसके लिए बांस की लम्बी काठी के एक छोर पर जरी का लाल या केसरिया कपड़ा लगाते हैं। फिर उस पर शक्कर के बतासों की माला,आम के पत्ते,नीम के पत्ते, फूलों का हार ये सब बांधकर उस पर तांबे का कलश उल्टा रखते हैं। फिर ये काठी दरवाजे पर या छत पर बांध देते हैं।तांबे का कलश उल्टा लगाने के पीछे मान्यता है कि ब्रम्हांड की सारी सकारात्मक ऊर्जा को ये तांबे का कलश आकर्षित करके पृथ्वी में भेजता है। अर्थात घर की नींव में सकारात्मक ऊर्जा जाने से और मजबूत होती है।इसकी विधिवत पूजा कर नैवेद्य अर्पित किया जाता है।घर के आंगन में रंगोली बनाते हैं।द्वार पर आम के पत्ते और हजारे के फूलों की बंदनवार लगाते हैं।ये सभी कार्य सूर्योदय के तुरंत बाद में किए जाते हैं।संध्या समय सूर्यास्त पूर्व ही ये गुड़ी उतारकर प्रसाद सबको बांट देते हैं।</div><div>नैवेद्य के लिए पूरण पोळी बनाते हैं जिसमें चना दाल,गुड़,नमक,नीम के फूल,इमली और कच्चा आम होता है।</div><div>गुड़ मिठास के लिए,नीम के फूल कड़वाहट के लिए,इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होता है।आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है पर महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है।यह दिन वर्ष के साढ़े तीन मुहुर्त में से एक मुहुर्त भी माना जाता है।इस दिन कोई भी शुभ कार्य शुरू करें तो उसका फल बहुत बढ़िया मिलता है।</div><div>तो सखियों ऐसा देश है मेरा जहां हर उत्सव के पीछे एक कहानी है। मैं हूं तो मारवाड़ी पर विवाह के बाद महाराष्ट्र में आ गई तो यहां के उत्सव यहीं के अनुसार मनाती हूं।</div><div>लेखिका- भारती पंचारिया शर्मा<div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjt6VprNmwrnwiGxDAsK-5ku-18ZjtxlDfWMON9WS7WzUmzby9ltRaOjPA63x-WLQoouHJRRwa4pMGYhV7QAxfHn_SGScl72ZCVEBgJfz1fbp0x7oo_Sw85c5ua1ERvDe9GszFxWhLAcx0/s1600/1581348221798154-0.png" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjt6VprNmwrnwiGxDAsK-5ku-18ZjtxlDfWMON9WS7WzUmzby9ltRaOjPA63x-WLQoouHJRRwa4pMGYhV7QAxfHn_SGScl72ZCVEBgJfz1fbp0x7oo_Sw85c5ua1ERvDe9GszFxWhLAcx0/s1600/1581348221798154-0.png" width="400"></a></div><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhemibphu8dCnlw34yOnazj9PM1EZMGgHPu7hvsZfJ4gzEra0afL0Xi6g1DJkdnHCwFDKMLxzLK_YSJEGKSUaBZuv1yKAXEq1GBMe1AYAYFH84BG7Ubo2CCduKvkLxZPHxgBGpE0IowMzw/s1600/1581348215195391-1.png" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhemibphu8dCnlw34yOnazj9PM1EZMGgHPu7hvsZfJ4gzEra0afL0Xi6g1DJkdnHCwFDKMLxzLK_YSJEGKSUaBZuv1yKAXEq1GBMe1AYAYFH84BG7Ubo2CCduKvkLxZPHxgBGpE0IowMzw/s1600/1581348215195391-1.png" width="400"></a></div></div><div> </div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-64899413259911482892020-02-10T09:29:00.001+05:302020-02-10T09:29:25.300+05:30"जमाई षष्ठी "<div>"जमाई षष्ठी"</div><div><br></div><div>आज मैं आपको बंगाल के एक विशेष त्यौहार के</div><div>बारे में बताने जा रही हूं,जो शायद बंगाल </div><div>के अलावा कहीं नहीं मनाया जाता।</div><div>बंगाल में रहने वाले सभी इसे जानते हैं।</div><div><br></div><div>बंगाल त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है, यहां 12 महीने में 13 त्यौहार मनाए जाते हैं , सभी धर्म के लगभग सभी त्यौहार यहां सद्भावना पूर्वक मनाया जाता है। </div><div><br></div><div>पश्चिम बंगाल में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्यौहार दुर्गा पूजा है, और यह पूरे 9 दिन उत्साह के साथ मनाया जाता है। जिसमें मां दुर्गा की आराधना और पूजा-अर्चना की जाती है।</div><div> यहां मनाए जाने वाले अन्य त्योहारों में काली पूजा, बसंत पंचमी, भाई दूज, दशहरा, होली, महावीर, जयंती, बुद्ध जयंती, रथ यात्रा, आदि है।</div><div> यहां कई महापुरुषों के जन्मदिन भी त्योहारों के जैसे बनाए जाते हैं। जैसे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म दिन, श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्मदिन, और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन भी त्योहारों की भांति मनाया जाता है।</div><div><br></div><div>अब मैं आपको बताने जा रही हूं</div><div>एक अनोखे त्यौहार के बारे में</div><div>नाम है 'जंवाई षष्टी' </div><div><br></div><div> कोलकाता में 'जामाई षष्ठी' नामक एक खूबसूरत त्यौहार मनाया जाता है। जामाई को कई जगह दामाद, मेहमान इत्यादि भी कहा जाता है। जामाई षष्ठी एक ऐसा त्यौहार है जो जामाई को अपने ससुराल पक्ष से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। यह त्यौहार ससुरालवालों के साथ दमाद के सुंदर बंधन को भी प्रदर्शित करता है। जामाई षष्ठी का पारंपरिक त्यौहार महिलाओं की सामाजिक-धार्मिक तथा कर्तव्य के हिस्से के रूप में पैदा हुआ था। दामाद को 'जामाई' और ‘षष्ठी' ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के छठे दिन को कहते हैं। जिसका अर्थ छठा दिन है। इस प्रकार यह त्यौहार परंपरागत हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने में शुक्ल पक्ष के छठे दिन मनाया जाता है। </div><div><br></div><div>अब मैं आपको इसको मनाने की विधि</div><div>बताने जा रही हूं।</div><div>कुछ शब्द बंगाली के भी लिखी हूं।</div><div>ताकि लगे बंगाली त्यौहार है।</div><div>तो लो सखियों पढ़ें बंगाल के इस </div><div>अनोखे त्यौहार केबारे में.................</div><div><br></div><div>यह त्यौहार सामाजिक रिवाज़ मजबूत कर पारिवारिक बंधन की नींव रखता है। इस दिन लड़की के घर वाले अपने-अपने जमाइयों की खूब आव-भगत करते है। दामाद अपने ससुराल वालो को ‘शोशूर बारी’ भी कहता है। जामाई षष्ठी पश्चिम बंगाल में हिंदू परिवारों के द्वारा बरसों से मानाई जाती रही है। इस त्यौहार में लड़के के ससुराल वाले जमाई और बेटी को पहले से ही निमंत्रण भेज बुला लेते हैं और उनका आदर- सत्कार करते हैं। जमाई के लिए कई आयोजन भी किए जाते हैं। सास विशेष व्यंजन बनाती हैं और अपनी बेटी और दामाद को सम्मानित करती हैं। बंगाल में इस दिन अनिवार्य रूप से हिल्सा मछली बनाई जाती है। जमाई षष्ठी को लेकर इन दिनों बाजार में हिल्सा मछली की कीमत बढ़ जाती है। वैसे शहर में इस मछली की आवक कम है। इसलिए एक हजार से 15 सौ रुपए प्रतिकिलो बिकती है। जमाई षष्ठी के दिन इसकी मांग को देखते हुए कीमत और भी बढ़ जाती है। इस दिन के लिए हिल्सा मछली कोलकाता से मंगाई जाती है। जमाई षष्ठी के लिए दुकानें भी सज जाती है। बाजारों की रौनक बढ़ जाती है। ससुराल पक्ष बेटी-जमाई को देने के लिए कपड़े इत्यादि की खरीदारी करते हैं।</div><div>दामाद का किया जाता है भव्य स्वागत</div><div>जमाई षष्ठी बंग समुदाय का पारंपरिक पर्व है। इसमें दामाद ससुराल जाते हैं, जहां उनका भव्य स्वागत किया जाता है। दामाद और बेटी के घर पहुंचने पर थाली में धान, दुर्बा और पांच प्रकार का फल रखकर सास पूजा करती है। धान और दुर्बा घास को माथे पर स्पर्श कराया जाता है। यह आशीर्वाद का प्रतीक होता है। माथे पर दही से एक फोटा (तिलक) लगाया जाता है। इसके बाद पीला धागा (षष्ठी धागा) जिसे 'षष्ठी सूतो' भी कहते हैं सास उसे जामाई के हाथ पर बांधती है। धागा हल्दी के साथ रंगीन पीला रंग का होता है इसमें मां षष्ठी का आशीर्वाद होता है जो बच्चों की देखभाल करता है। वहीं, परिवार के सभी सदस्य साथ मिलकर भोजन ग्रहण करते हैं। दामाद के स्वागत में अनेक प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। क्षमता के मुताबिक उपहारों का आदान-प्रदान भी किया जाता है। दामाद को उपहरा, मिठाई और फल दिए जाते हैं। जिसके बाद दामाद भी सास को उपहार भेंट करता है। तब सास उस अनुष्ठान को निष्पादित करती है जिसमें जमाई के माथे को छह फलों वाले प्लेट को छुआया था। यह दिन कई अन्य क्षेत्रों में अरण्या षष्ठी के रूप में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से दामाद यानि जामाई को ससुराल पक्ष के करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस प्रकार यह पारिवारिक संबंधों को सुरक्षित और मधुर बनाने में मदद करता है। बंगाली भोजन अपने प्यार के लिए प्रसिद्ध हैं। अनुष्ठान करने के बाद एक छोटा सा त्यौहार आयोजित किया जाता है। दामाद के सबसे अच्छे और पसंदीदा व्यंजन तैयार किए जाते हैं। मेहमानों को बंगाली व्यंजन परोसा जाता है। विभिन्न मछली व्यंजनों, प्रवण मलिकारी और सबसे प्रसिद्ध बंगाली मीठा 'सोंदेश' अवश्य शामिल होता है। मूल रुप से यह त्यौहार दामाद को केंद्रित करता है। दामाद सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करता है और अपने ससुराल पक्ष के मान-सम्मान और प्यार का लुत्फ उठाता है।</div><div>चलिए पढ़कर आंनद लिजिए.................</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div>लेखिका- सुषमा शर्मा </div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-44296672286446403712020-02-09T23:38:00.001+05:302020-02-09T23:38:17.319+05:30फूलदेई त्यौहार<div>फूलदेई त्यौहार "उत्तरांचल"</div><div><br></div><div>उत्तराखंड अपनी खूबसूरत वादियों ,ऊंचे ऊंचे पहाड़,पर्वतों , झीलों , नदियों व शानदार हिमालय के दर्शन के लिए जाना जाता है ।और यहां पर प्रकृति द्वारा बिना कहे दिए जाने वाले अनगिनत उपहारों के बदले प्रकृति को धन्यवाद देने हेतु अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं ।उनमें से एक त्यौहार है फूलदेई त्यौहार या फूल संक्रांति।‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का संदेश देती है यह परंपरा।</div><div><br></div><div>फूलदेई त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की संक्रांति को मनाया जाता है ।यह चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है।और हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है।इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं।</div><div><br></div><div>पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सज जाता है।और बसंत के इस मौसम में फ्योली, खुमानी, पुलम, आडू , बुरांश ,भिटोरे आदि के फूल हर कहीं खिले हुए नजर आ जाते हैं।जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते हैं वही घर आंगन में लगे आडू, खुमानी के पेड़ों में सफेद व हल्के बैंगनी रंग के फूल खिले रहते हैं।</div><div>चैत्र मास की संक्रांति के दिन या चैत्र माह के प्रथम दिन छोटे–छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं।और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं।</div><div>उसके बाद वो पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं ।और उन फूलों से दरवाजों (देहली) का पूजन करते हैं।यानी दरवाजों में उन सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं।साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं।</div><div><br></div><div>फूल देई ……छम्मा देई</div><div><br></div><div>देणी द्वार……. भर भकार ……</div><div><br></div><div>फूल देई ……छम्मा देई।</div><div><br></div><div>उसके बाद घर के मालिक द्वारा इन बच्चों को चावल, गुड़ ,भेंट या अन्य उपहार दिए जाते हैं। जिससे ये छोटे-छोटे बच्चे बहुत प्रसन्न होते हैं ।इसी तरह गांव के हर दरवाजे का पूजन कर उपहार पाते हैं।यह प्रकृति और इंसानों के बीच मधुर संबंध को दर्शाता है।जहां प्रकृति बिना कुछ कहे इंसान को अनेक उपहारों से नवाज देती है।और बदले में प्रकृति का धन्यवाद उसी के दिए हुए इन प्राकृतिक रंग बिरंगी फूलों को देहरी में सजाकर किया जाता है।</div><div>शाम को तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं ।मगर चावल से बनने वाला सई ( सैया) विशेष एक तौर से बनाया जाता है।चावल के आटे को दही में मिलाया जाता है।फिर उसको लोहे की कढ़ाई में घी डालकर पकने तक भूना जाता है।उसके बाद उसमें स्वादानुसार चीनी व मेवे डाले जाते हैं यह अत्यंत स्वादिष्ट और विशेष तौर से इस दिन खाया जाने वाला व्यंजन है।</div><div>इस साल जिनके बच्चे हुये है उनकी विशेष टोकरी बनाई जाती है।सभी घरो से बच्चो को ढेर सारा आशीष पैसे व चावल मिलता। इस बार मेरे घर भी कानहा आएँ है तो मै भी इस बार नयी टोकरी बनाऊगी🌹🙏</div><div>लेखिका, - भावना पांडे <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><br></div>Praveena joshihttp://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461394709321308994.post-90531355599379929302020-02-09T23:29:00.001+05:302020-02-09T23:29:56.592+05:30"गणगौर का त्यौहार" राजस्थान<div><br></div><div><br></div><div> गणगौर </div><div><br></div><div>हमारे यहाँ गणगौर का त्यौहार हर्ष उल्लास के साथ मनाते है </div><div>मे बचपन में ये त्यौहार करती थी लेकिन शादी के बाद ससुराल में नहीं करते ।। </div><div><br></div><div>लेकिन यह त्यौहार मे बचपन में कैसे करती थी वो आज बताऊँगी</div><div><br></div><div>यह वृत सभी सूहागीन औरते लडकीया कर सकती हैं ।।</div><div><br></div><div>मे बता रही हूँ पहले दिन से शूरू कर के सत्रह तक की पूजा </div><div><br></div><div>यह होली के दूसरे दिन (चैत्र मास की प्रतिपदा से) छारनडी वाले दिन से शूरू हो कर चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तक मनाने वाला मेरा सबसे पसंदीदा तयौहार हूआ करता था ।।</div><div><br></div><div>यह सत्रह दिन की गणगौर पूजा कन्या जिस को मासिक धर्म नही आता हो (रजसवला )वही कर सकती हैं ।।</div><div><br></div><div>हम होली के दूसरे दिन मिट्टी का बना हुआ कटोरा जिस को हम कुन्डलीया बोलते हैं ।।</div><div><br></div><div>कुन्डलीये के अंदर बालू रेत में गेहूं डाल कर उगाते थे उसे दूब कहते हैं ।।</div><div>हम आठ दस सहेलीया मिलकर एक जगह ही करती थी ,सुबह स्कूल जाने से पहले हम अपने अपने घर से लोटा भरकर जल लेकर जाती थी और गवर माता को सच्चे मन से जल अर्पित करती थी और मेरे दादी जी हमे गवर माता की कथा सुनाती थी ।।</div><div><br></div><div>रविवार के दिन हम जंगल मे तालाब से जल लेने जाती थी और गीत भी गाती थी ।। उस समय फोन नही थे तो हम स्टूडियो वाले चाचा जी को तालाब पर साथ लेकर जाते थे मेरे पास उस समय का एक ही फोटो है।।</div><div><br></div><div>गवर ए गणगौर माता खोल ए किवाडी </div><div>बाहर ऊभी तारी पूजन आली </div><div><br></div><div>सात दिन बाद शीतला सप्तमी के दिन से घूडला पूजा शूरू हो जाता ।।</div><div><br></div><div>घूडला मिट्टी का बना हुआ जाली की तरह बना हुआ होता है ।।</div><div><br></div><div>घूडला लेकर घर घर फिरते थे और गीत भी गाती थी </div><div>मुझे गीत याद नही है ।। </div><div><br></div><div>शाम के समय गवर माता की आरती भी करती थी </div><div>सत्रहवे दिन गणगौर वृत करती और शाम को गवर माता और घूडले की धूम धाम से शादी करती थी कोई गवर माता मा बनती तो कोई पिता कोई ससुराल वाले पूरी रीति रिवाज के साथ हम गवर माता का विवाह सम्पन्न करते ।।</div><div><br></div><div>दूसरे दिन सुबह सुबह छः बजे ममी उठा कर कहती मधु आज तेरी गवरा की विदाई है ।।</div><div><br></div><div>और ममी मुझे मिठाई नमकीन डाल कर देती हम सभी सहेलीया इकठ्ठा होकर गवर माता को लेकर कुएँ के पास जाती और जो भी कुछ खाने का सामान घर से लेकर आती वो गवर माता को चढा कर सुबह छः बजे खुद भी खाती 😍</div><div><br></div><div>और गवर माता को कुएँ में डाल कर उन से अच्छे वर की कामना करती </div><div><br></div><div>मेरी माँ आस पडोस की औरते हमे कहती की गवर माता से अच्छे घर वर की मांग करना गवर माता से 🙏 हम ऐसे ही करती थी ।।</div><div><br></div><div>गवर माता की कृपा से मुझे बहुत अच्छा घर वर मिला </div><div>मेरे ससुराल में यह त्यौहार नही करते इसलिए मैं इस त्यौहार से वंचित हू ।</div><div>मेरी गवर माता से प्रार्थना है मेरी बेटी को भी अचछा घर वर देना ।।🙏🙏 गवर माता की जय 🙏</div><div> लेखिका, " माधुरी गुचिया"<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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