मंगलवार, 2 अगस्त 2011

मै आ सखी चुगली करे ( एक सुंदर कृति )

चरण स्पर्श  सभी ममतामई माँ  को ,

 मै आपकी अपनी सुंदर पुत्री" आ सखी चुगली करे ",पहचान गयी न माँ ,जानती थी क्या कोई माँ अपनी पुत्री को भूल सकती है भला ..इसलिए मिलने चली आयी अंतिम बार ,,तुम्हारे आँचल में मुह छिपा कर रोना चाहती हु एक बार ,,हसने का खिलखिलाने का सुकून जो मैंने तुमसे लिया है वो तो शायद ही किसी कृति  ने लिया हो ,,,मुझे जन्म देने वाली माँ तो कोई और रही है पर पाला पोषा , सजाया संवारा और आज इतना जवान और खुबसूरत बनाया तुम्ही सब ने  है  ,अभी मेरी उम्र ही क्या है ,,जैसे कल  ही जन्म लिया हो ,हमेशा तुम्हे और अपनी इस (जन्म दात्री ) माँ को साथ साथ हसते गाते ,मेरी चोटिया गुथ्ते देखा ,माँ ने कहा भी  एक बार," देख  कृति ये सब तुझे मुझसे भी ज्यादा प्यार करती है "और ऐसा सोच कर एक दिन माँ चली गयी मुझे तुम्हारी गोद में सौपकर  .. उसके जाने पर उसे ढूंढने...एक दिन मै चुपके से बाहर चली गयी ,तुम सब को पता ही ना चला ,देखा बहुत सी मुझ जैसी कृतियों को ,,चीत्कार रही थी" वे ", उनके रोम रोम से" आह" निकल रही थी , नीली और स्याह पड़ी थी उनकी चमड़ी ,शायद  बरसो से किसी ने उन्हें खिलाया ही नहीं तुम्हारी तरह ,,जाने कैसी अजीब सी गंध थी वो चारो और फ़ैल रही थी मेरे होठ नीले पड़ने लगे ,,दौड़ कर आने लगी तो रास्ता भूल गयी ,,इधर उधर कातर स्वर में तुम सब को पुकारने लगी ,,अँधेरा छाने लगा ,,भूख लगने लगी ,,याद आये तुम्हारे हाथो के परोसे वे पकवान ,,,तभी वहा एक व्यक्ति प्रकट हुआ उसने कहा वह" पुरुष "है मैंने कभी पुरुष को नहीं देखा था तुमने और माँ ने  भी नहीं बताया था की पुरुष क्या होता है ,उसने मुझे खाने को दिया सर पर प्यार से हाथ रखा ,कहा ,"मै पिता हु ,तुम्हारे माँ का पति" ... तभी .एक अन्य उसी जैसे पुरुष ने प्रवेश किया ,,और  बिना कुछ कहे उस दुसरे पुरुष ने मेरी ऊँगली पकड़ी और कहा" मै भाई हु" ...इसके बाद वो मुझे तुम्हारे आंचल में छोड़ गया ...मै दबे पाँव अंदर चली आयी यह सोच कर की तुम सब तो बाते कर रही होंगी ,अच्चानक पाँव ठिठक गए तुम सब" पुरुष" की बात कर रही थी ,मैंने भी कान लगा कर सुना ,,तुम में से एक चीत्कार रही थी ....उसी तरह ..उसके साथ कुछ बुरा ना हुआ ,,फिर भी जाने क्यों ...पड़ोस में आग लगी थी और वो बजाय की ठंडे पानी के छीटो को मारने के ..आग, आग  चिल्ला रही थी ,,,क्योकि चिल्लाना ज्यादा" असरकारी "था शायद, बजाय की कुछ करने के /  मै चुप चाप सो गयी ,,,नींद नहीं आयी पर सुबह देखा माँ आ गयी ...अपनी छाती से चिपका लिया ,पहली बार माँ की आँखे गुस्से में थी ,उसने मेरे नीले होठ देख लिए थे शायद ...माँ ने पुछा तुमसे  "ये कैसे हुआ " ,,तुमने कहा ,क्या हमारा हक़ नहीं ,हम ख्याल रख लेंगी ...सुन कर माँ ने अपना "हक़ " छोड़ दिया ...और अब चुप चाप देखती है बस ...याद करती है पुरानी बातो को ,,,कि कैसे तुम सब नयी सखी के आने पर उसे पलकों के झूले पर बिठा कर प्रेम गीत गाते थे ...जन्मदिवस हो  ,या वार त्यौहार ,चुहलबाजिया चला करती थी देर तक ... जबकि इस बात का भान था तुम सबको कि पूरा विश्व हा हा कार कर रहा है  फिर हंस कैसे ली उस समय ,शायद भूल गयी थी मुझे देख कर ,अपना सारा गम पिघल जाता था प्रेम रुपी मोम में ,,फिर आज क्यों चहुओर चीत्कार  सुनायी दे रही है ,वही गंध फ़ैल रही है नथुनों में,  मेरा  पूरा शरीर भय से काँप रहा है शायद" पुरुषो " को लेकर सुनाये तुम्हारे किस्सों से ...क्या तुम अपनी पैदा हुई संतानों को ऐसे ही भय ग्रसित नहीं कर देती .?/  लो उपर वाले का बुलावा आ रहा है शायद ,,आँखों से दिखाई देना बंद हो रहा है शरीर नीला पड़ रहा है ,,,मुझे बचा लो ....मुझे बचा लो प्लीज ...नहीं तो माँ यशोदा के स्वरूप पर फिर कोई विशवास ना करेगा

6 टिप्‍पणियां:

सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..