मेरे शब्द---------------
शब्द ...मेरे शब्द..!!! कहाँ हो तुम .!....क्यों इतने शैतान हो तुम ......?
कब से गायब हो , मानते हो ना..!!
अपनी अहमियत ,जानते हो ना
मस्तिष्क बिलकुल सूना है ...
मन का दुःख उस से भी दूना है ......
दूर बचपन तक ढूंढ आई
स्म्रति पर जमी हर गर्द हटाई ...
मन के हर कौने,हर आँगन आवाज़ लगाई !!!
लेकिन तुमको नहीं दिया सुनाई .
मुझ को समझो साथ निभाओ
मेरे विचलित विचारों को अपना जामा पहनाओ
आभारी और क्रतग्य रहूंगी
आजाओ अब कुछ नहीं कहूँगी ............:)
.शब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
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