गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

गणगौर


                     गणगौर
आज के त्यौहार  के संदर्भ में मैंने गणगौर को चुना है ,जो मेरे सहित सभी सखियों का पसंदीदा त्योहार है। हिन्दू नूतन वर्ष चैत्र से प्रारम्भ होता है और वर्ष का सबसे पहला त्योहार गणगौर होता है।इसका कुमारी कन्याएं व शादीशुदा  दोनो पूजन करती है ।भगवान शिव व माता गौरी के रूप को गवर व ईश्वर के रूप में पूजा जाता है। उत्तम वर की कामना व सुखी स्वस्थ जीवन की आस को मन में लेकर इस त्योहार को  गौरी व शिव को पूजा जाता है ।
            यह वह  त्यौहार है जिसमें 16 दिनों तक  पूजा होती है और उन 16 दिनों   में स्त्रियां अपने रूप व यौवन को अलग अलग परिधानों व श्रृंगार से श्रृंगारित कर के माँ गौरी की पूजा करके कर्णप्रिय गीत गाती है व अपनी सखियों- सहेलियों के साथ 🤣हँसी ठिठोली करते हुए उद्यान से दूर्वा लेकर पूजा करती है । उसके बाद शीतलासप्तमी से शाम को घुड़ला लेकर अपनी सभी सखियों के साथ एक दूसरे के वहाँ जाकर गीत व नृत्य करती है। ढोल व थाली की थापप पर जो नृत्य किया जाता है उसके आगे तो बड़े बड़े डी जे भी गौण है। चकरी व घूमर की जो छटा देखने को मिलती है उसका तोकोई जवाब ही नहीं ।
          बीज (द्वितीया)की शाम को लोटियो में तालाब से जल भर कर लाया जा कर गवर माता को चढ़ाया जाता है। तीज की सवेरे यही क्रिया दोहरा कर  तीजणियां (यहाँ आपको बता दूँ कि गवरा पूजने वाली को तीजणियां कहा जाता है) व्रत का उद्यापन करती हैं । शाम को माता की सवारी निकाली जाती है और उत्सव मनाया जाता है।
           इसमे सबसे बड़ी बात ये है कि सभी सखिया एक से परिधान में होती है। सभी 16 श्रृंगार व आभूषण से लकदक होती है जो सभी एक से बढ़कर एक सुंदरता का उदाहरण होती है ।पुरुषों के लिए तो ये बड़ा ही नयनाभिराम दृष्य होता है। सभी पति अपनी पत्नियों को शगुन व उपहार देकर उनका व्रत खुलवाते है प्रस्तुत है.....
प्रस्तुत है इसकी कुछ झलकियां.....
लेखिका - निर्मला माहेश्वरीनिर्मला महेश्वरी

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