महा छठ पर्व
मैं बात करूंगी बिहार में मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्योहार महापर्व छठ की।
यह चार दिवसीय उत्सव हैं ।
चतुर्थी - नहाए खाए कद्दू भात।
पंचमी - निर्जला व्रत,शाम को गुड़ की खीर रोटी से खरना।
षष्ठी- निर्जला व्रत रख के शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य।
सप्तमी - उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व की समाप्ति
छठ पूजा को बिहारी लोगों की पहचान के रूप में देखा जाता है ।सही भी है बिहारी लोग देश के किसी भी कोने में चले जाएँ भाषा और बोलने के अंदाज बदल ले, पर छठी मैया की भक्ति नहीं छोड़ पाते।
देश विदेश सभी जगहों के लोगों ने खुले दिल से इसका स्वागत किया है क्योंकि यह प्रकृति की पूजा है, सूर्य की, नदियों की पूजा है।
प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है, महत्व को दर्शाता है ।इसमें घाटों( नदी का किनारा) की सफाई की जाती है ,सजावट की जाती है।
इसमें सिर्फ उगते सूर्य की हीं नहीं बल्कि डूबते सूर्य भी पूजा की जाती है। कालांतर में इसमें मूर्ति पूजा भी होने लगी है। भगवान सूर्य और छठी मैया (सूर्यदेव की बहन )की मूर्ति बनाई जाने लगी है। पर इसका मूल वही है।
सूरज तेरी रोशनी जीने का आधार।
रोशन ये ब्रह्मांड है माने हम उपकार ।।
जीवन यह पावन बने ज्यों गंगा का नीर।
छठी मैया पूजन तुम्हे जाए नदिया तीर।।
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