गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

हरेला

हरेला

देव भूमि कहा जाने वाला उत्तराखण्ड जहां अपने तीर्थ स्थलों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है, वहीं यहां की संस्कृति में जितनी विविधता दिखाई देती है, शायद कहीं और नहीं है. उत्तराखण्ड को देश में सबसे ज्यादा लोक पर्वो वाला राज्य भी कहा जाता है. इन्हीं में से एक है #हरेला.

श्रावण मास में संक्रांति को हरेला पर्व उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। संक्रांति से नौ दिन पहले सात प्रकार के अनाजों  को होता जाता है और उगने वाली हरियाली (हरेला) को दसवें दिन काटा जाता है और इसी दिन इस पावन पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ये पर्व कृषि और हरियारी का प्रतीक भी कहा जा सकता है

'जी रया जागि रया, यों दिन मास भेटनै रया...।' यानी कि आप जीते-जागते रहें। हर दिन-महीनों से भेंट करते रहें...यह आशीर्वाद हरेले के दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य परिजनों को हरेला पूजते समय देते हैं। इस दौरान हरेले के तिनकों को सिर में रखने की परंपरा आज भी कायम है। 

हरियाली के प्रतीक हरेला पर्व की तैयारी 10 दिन पहले ही शुरू होती है। एक टोकरी में मिट्टी डालकर और उसे मंदिर के पास रख सात अनाज बोते हैं। इसमें गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों व चने को शामिल किया जाता है। सुबह-शाम पूजा के समय इन्हें सींचा जाता है और नौंवे दिन गुड़ाई की जाती है। जिसके बाद दसवें दिन हरेला मनाया जाता है।
लेखिका - दीपा जोशी

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