मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

पगली सी चित्कार




मंदिर के सामने हर रोज अंधेरे मे एक साया दिखता है
जब चित्कार अनसुनी की तो महसूस हुआ वो एक औरत है ।
बहुत डरी...इतना कि फिर कभी जिक्र नहीं किया किसी से
क्योकि जानती हु ऐसी औरत " पगली "कहलाती है
मिल जाती है अक्सर हर उस किनारे पर जहा नगर नहीं बसते ।
( वास्तविक अनुभूति पर आधारित )
प्रवीणा जोशी

3 टिप्‍पणियां:

सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..