गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

हर तरफ एक शोर हैं 
घोटालो का ही जोर हैं 
हर कोई देखता हैं राजनेताओ को 
पर यह हमारी अपनी ही कमजोर जड़ो का तोड़ हैं 


बचपन में हम देखा करते थे .दादी कितने घोटाले करती थी
माँ के लिय आई साड़ी बुआ को दिया करती थी
एक किलो दूध में एक लौटा पानी का
३० रुपए की सब्जी में सारी मिर्ची मुफ्त होती थी
क्या वोह घोटाला नही था हमारे खाने में ?

स्कूल में अक्सर हम मार खाने से बचते थे
पिछले साल वाले बच्चे की कॉपी से नोट्स टीपा करते थे
मेरे लिय तुम कल सीट रोकना कहकर अपने नोट्स दिया करते थे
क्या यह घोटाला नही था .हमारे बाल मन संस्कारों में ?


कॉलेज में जाकर बंक कक्षाए करना
एक्स्ट्रा क्लास के बहाने मूवी देखने चलना
नयी किताबे लेनी हैं माँ ,पर गिफ्ट दोस्त को करना
क्या यह घोटाला नही था हमारे व्यवहारों में ?

आज का काम कल करेंगे या
उस पर कुछ चाय पानी रखदो
आज बीमार हैं मेरी माँ कह दफ्तर में छुट्टी कर लो
दफ्तर का आधा सामान घर में पार्सल कर लेना
क्या यह घोटाला नही हैं हमारे रोजगारो में


बीबी घर पर रोती हैं दूसरी बाहो में होती हैं
पति दिनभर काम करे बेगम घर पर सिर्फ आराम करे
बच्चे बिगड़े पैसे पाकर बूढ़े चाहे भूखे मरे
रिश्ते नाते सारे छोडे . तेरे- मेरा अब कोई नही
क्या यह घोटाला नही अपने अपने रिश्तेदारों का


हर जगह घोटाले हैं
हम अपना दामन देख न पाते हैं
दूसरो पर अंगुलिया उठाते हैं
इन घोटालो की बुनियाद कहा से पढ़ी ?
यह जान नही पाते हैं
यह घोटाले हुए हैं जो आज
हमारी सामाजिक दुनिया में
उसके ज़िम्मेदार क्यों हमेशा दूसरो को ठहराते हैं
क्या यह घोटाला नही हैं
अपनी अपनी जिम्मेदारियों से बचकर जाने का ?Neelima sharma

5 टिप्‍पणियां:

सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..