बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
v
बदल गया माँ होने का अर्थ
कहाँ गया वो सामर्थ्य ?
देखती थी माँ की गोद के लिये
मचलते हुए भाइयों को
देखती हूँ माँ कि जिम्मेदारियों को
ठेलते हुए भाइयों को ......
कैसे जान लेती थी वो
सबके मन की बात अनकही
आज उसके मन की बात
किसी को जानने की फ़िक्र ही नहीं ......
थोड़े में भी जाने कैसे
उसने रखा सबका ख्याल
कृशकाय हुई आज उसका
कोई न पूछे दिल का हाल
ज्यादा की तो चाहत ही नहीं
बस थोड़ा सा दे दो सम्मान
मृग- मारीचिका से मोह में घिर कर
मत करो उस माँ का अपमान
उसका सारा समय तुम्हारा
प्रेम समग्र तुम्हारे लिये
मत तरसाओ बूढ़े कानों को
प्यार भरे बोलों के लिये ....
एक बार बेटा बन कर
देखो धुंधली आँखों को
आज ज़रुरत है तुम्हारी
उसकी कमज़ोर बाँहों को ....
गोद में सिर रख कर देखो
आज भी सुकून पाओगे
लेने देने के व्यापारी
इसमें भी कुछ पाओगे .....
जब अपने बच्चे दुत्कारेंगे
तब उसकी व्यथा समझ पाओगे
चली गयी जो एक बार तो फिर
ढूँढते रह जाओगे ....
एक बार वो चली गयी तो
कुछ नहीं कर पाओगे .....
एक बार जो चली गयी तो
बस रोते ही रह जाओगे .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार - 13/09/2013 को
जवाब देंहटाएंआज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार - 13/09/2013 को
जवाब देंहटाएंआज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra