जज़्बात ------होली के रंगों के साथ ....
होली की सुगबुगाहट बसंत पंचमी से ही शरू हो जाती है ----------एक बयार ब्बहने लगती है जो सुकून देती है ......
ब्रज में वसंत पंचमी के अवसर पर चौराहों पर होली जलाने वाले स्थानों पर डंडा गाड़े जाने के साथ ही मंदिरों में होली गायन की परंपरा शुरू हो जाती है.....
और शहरों में भी प्रतीकात्मक होली जगह -जगह चौराहे पर रख दी जाती है ........
यूँ तो होली की छटा पूरे भारत में निराली होती है पर उत्तर प्रदेश में इसका रंग देखते ही बनता है ...
वृन्दावन ..मथुरा की ..होली तो यूँ भी विश्व प्रसिध है ...
बरसाने की लट्ठ मार होली देखने विश्व भर से लोग देखने पहुँचते हैं ...........बरसाना की लठमार होली भगवान कृष्ण के काल में उनकी लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है।
और बात करें अपनी होली की तो .....करीब पंद्रह दिन पहले से ही ...महल्ले के बच्चे घर -घर होली का चन्दा इकठ्ठा करते थे ....
ख़ुशी से या ज़बरदस्ती .....चंदा तो लेना ही होता ......कई बार शरारती लड़के किसी की चारपाई या ..कोई लकड़ी का सामान भी होली में डाल देते पर ............सब इसे शरारत का ही नाम देते ..कोई बुरा ना मानता ....जो चंदा देता..नारा लगता
'सच्चा भाई सच्चा ये घर सच्चा'......और कोई न दे तो ........' हुक्के पे हुक्का ये घर भूक्का '
और सब शोर मचाते निकलते तो आंटी पैसे पकड़ा ही देती थी ......सबके घर में आलू के चिप्स ,आलू ,मैदा और साबूदाने के पापड बनने शुरू हो जाते थे ..........
चार दिन पहले से.......बेसन के सेब ...दाल तल कर घर का विशेष नमकीन बनाया जाता ........गुझिया होली का विशेष खाद्य पदार्थ होता है ...कई दिन पहले से मावे ,बूंदी के लड्डू की और सूजी की गुझिया बनायी जाती थी ......
नमक पारे , शकरपारे ...मठरी ....नमक और मोयन डली मैदा ...से अनेक प्रकार की आकृतियाँ बनाते ..जैसे करेले ....कली ....काजू .....और सबसे स्वादिष्ट बनती थी ............सूजी की भुरभुरी और खस्ता ____सतपुली __.....
बेहद उत्साह के साथ हर घर में ये सभी चीज़ें मिल कर बनायी जाती थीं ....मोहल्ले में सब एक -दूसरे के घर में जाते ....और मदद करते ..........सब मिल कर एक -एक घर का काम बारी -बारी निपटाते थे
एक दिन पहले बनते थे दही बड़े ....जो उड़द और मूंग की दाल से बनाते थे .....हमारे यहाँ तो उसमें डालने के लिए मम्मी के हाथ का विशेष मसाला बनाया जाता ...........मीठी सौंठ बनती ...
और ..होली की शाम को .....जब होली दहन होता ....तो गज़ब का हुडदंग मचता था .....शोर शराबे के बीच नयी फसल गेंहू के बाल भूने जाते ......कई घरों में भी होली जलाने की परम्परा थी ..जो आज भी कायम है ...
हमारे घर में भी होली जलती थी ..जिसे चौराहे की होली से अग्नि लाकर ही जलाया जाता था ..... घर में महिलायें और बच्चे होली के गीत भी गुनगुनाते और गेंहू की बाल भी भूनते जाते ...........सभी पुरुष बाहर की होली से गेंहू के बाल भून कर लाते थे ........
उसके बाद शुरू होता गेंहू के भुने जौ सभी को देकर बड़ों के चरण स्पर्श ...छोटो को आशीर्वाद देने का सिलसिला .......
एक -दूसरे के गले मिलने का सिलसिला .......सुबह तक यही सिलसिला जारी रहता ........
एक मेला सा लग जाता .........उत्साह देखते ही बनता था .........
और पौं -फटते ही रंगों की बौछार ..अबीर-गुलाल ,मस्तक पर चन्दन ...और पिचकारी की रंगीन धार ...,.....,....
टेसू के फूल रात को भिगोये जाते .....जो त्वचा के लिए लाभदायक होते ..
महिलायें सुबह ही ...अपने बनाये खाद्य पदार्थो से थाल सजा कर .....दक कर रख देती ...दही बड़े कई प्लेट या बाउल में बन कर तैयार रहते ......कोई भी आये ..बिना खाए ना जाए .......
जिसकी जो मर्ज़ी हो जितनी मर्ज़ी हो खाए ...होली खेले और जब मर्ज़ी जाए ..........
यही सिलसिला दो या तीन बजे तक चलता ...खूब हुडदंग मचता .....धमाल होता ..सब सारे दुःख - सुख .....बैर -भाव ..सब भूल बस होली के रंग में रंग जाते ..............
धीरे -धीरे ....उत्साह कम होता ...जाता ..तो ..सफाई शुरू होजाती ......धुलाई होती ....एक -एक कर नहाना शुरू हो जाता ..सब थकान मिटाना शुरू करते ...और एक सप्ताह तक ...महिलाओं का होली मिलन ..चलता रहता था ...सबके घरों में जा -जाकर ...गुझिया का स्वाद लिया जाता .....गप -शप होती ...........और महिला मण्डली दूसरे घर की राह लेती
सब ..उत्साह में रहते थे ...न किसी का बजट गडबडाता ..न किसी का स्वास्थय ..........
खूब खाते और धमाल मचाते .......
आज भी होली .मनाई जाती है ........लेकिन ...सिर्फ औपचारिकता रह गयी है ........समयाभाव ,महंगाई ,बजट,और स्वास्थ के चलते बहुत सी खाने की चीज़ें अपना अस्तित्व ही खो चुकी हैं ....... कुछ परम्परा गत वस्तुएं हैं ......जिन्हें बनाना स्वाद से ज़्यादा ..बाध्यता है ......
और बाज़ार से सामान खरीद कर त्योहार की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है ...............
बहुत से लोग तो इस दिन ...घर में बंद होकर रहना पसंद करते हैं ........कुछ लोग सिर्फ ...गुलाल से खेलना .पसंद करते हैं .........रंगों का मिलावटी होना भी लोगो को ..उदासीन बना रहा है ............कई लोगो को .....त्वचा की समस्या हो जाती है ......आज के दिन कई लोग अपनी दुश्मनी का बदला लेकर ..इस सुंदर त्योहार की शालीनता को नष्ट कर देते हैं ....
कुल मिला कर आज ये रंगीन त्योहार अपनी पहचान खोने की कगार पर है ........सम्बन्ध औपचारिक हो रहे हैं ...त्योहार कैसे अनौपचारिक रह सकते हैं .........???
आज भी हर होली पर वही सब सामने आ जाता है ......
पर फिर ..मन को समझाना पड़ता है ..अरे ..हर समय एक सा नहीं रहता .........समय के सब बदलता है तो ---------तौर - तरीके क्यों नहीं ....??..लोगो का उत्साह क्यों नहीं .....???.........
और फिर याद आता है .......
अरे हाँ परिवर्तन तो संसार का नियम है ...और अगर वो सब बीत नहीं जाता ...तो में ये सब कैसे लिख रही होती ..इन अनमोल यादों में कैसे खोती ..............आप लोग भी कहीं न कहीं सहमत होंगे और शायद कुछ यादें आपको भी विचलित कर दे ..
.परन्तु .......परिवर्तन की स्थिरता को सम्मान देते हुए .....बस यही कहूँगी .....मित्रों ................आप सभी को होली की बहुत सारी हार्दिक शुभकामनाएं ........अच्छी और सुरक्षित होली खेलें ........
.
सम्बन्ध औपचारिक हो रहे हैं ...त्योहार कैसे अनौपचारिक रह सकते हैं .........???
जवाब देंहटाएंसही लिखा !!
धन्यवाद संगीता जी
हटाएं