http://nivia-mankakona.blogspot.in/2012/12/mayka.html
सोफे पर पीठ टिकाये निशा ने आँखे मूँद ली . पर आँखे मूँद लेने से मन सोचना तो बंद नही करता न . मन की गति पवन की गति से भी तेज होती हैं . एक पल मैं यहाँ तो दुसरे ही पल सात समंदर पार .,
सोफे पर पीठ टिकाये निशा ने आँखे मूँद ली . पर आँखे मूँद लेने से मन सोचना तो बंद नही करता न . मन की गति पवन की गति से भी तेज होती हैं . एक पल मैं यहाँ तो दुसरे ही पल सात समंदर पार .,
एक पल मैं अतीत के गहरे पन्नो की परते उधेड़ कर रख देती हैं तो दुसरे ही पल मैं भविष्य के नए सपने भी देखना शुरू कर देती हैं . निशा का मन भी उलझा हुआ था अतीत के जाल में . तभी फ़ोन की घंटी बजी
" हेल्लो "
"हाँ जी बोल रही हूँ "
"जी"
"जी "
" जी अच्छा"
" में उनको कह दूँगी "
"आपने मुझसे कह दिया तो मैं सब इंतजाम कर दूँगी ""
"विश्वास कीजिये मैं आप को अच्छे से अटेंड करुँगी आप आये तो घर "
" यह तो शाम को ही घर आएंगे इनका सेल फ़ोन भी घर पर रह गया हैं "
"आप शाम को 7 बजे के बाद दुबारा फ़ोन कर लीजियेगा "
"जी नमस्ते "
फ़ोन रखते ही पहले से भारी मन और भी व्यथित हो उठा एक नारी जितना भी कर ले पर उसकी कोई कदर नही होती हैं सुबह सुनील से निशा की बहस भी उसकी बहन को लेकर हुई थी यह पुरुष लोग अपने रिश्तो के प्रति कितने सचेत होते हैं ना स्त्री के लिए घर आने वाले सब मेहमान एक से होते हैं परन्तु पुरुषो के लिय अपने परिवार के सामने उसकी स्त्री भी कुछ नही होती,न ही अपना घर , खाने के स्पेशल व्यंजन होने चाहिए , पैसे पैसे को दाँत से पकड़ने वाला पति तब धन्ना सेठ बन जाता हैं पत्नी दिन भर खटती रहे पर उसपर अपने परिवार के सामने एकाधिकार एवेम आधिपत्य दिखाना पुरुष प्रवृत्ति होती हैं
सुनील की बहन रेखा सर्दी की छुट्टियाँ बीतने के लिय उनके शहर आने वाली थी सुनील चाहता था कि उनका कमरा एक माह के लिए उनकी बहन को दे दिया जाए निशा इस बात के लिए राजी नही थी पिछली बार भी दिया था उसने अपना कमरा दीदी को रहने के लिए .....
दिन भर रजाई में पड़े रहना पलंग के नीचे मूंगफली के छिलके , झूठे बर्तन , गंदे मोज़े निशा का मन बहुत ख़राब होता था काम वाली बाई भी उनके तीखे बोलो की वज़ह से उस कमरे की सफाई करने से कतराती थी . निशा के लिए सुबह स्नान के लिए अपने एक जोड़ी कपडे निकलना भी मुश्किल हो गया था तब .. उनके जाने के बाद जब निशा ने अपना कमरा साफ किया तो तब जाना था उसके कमरे से अनेक छोटी छोटी चीज़े गायब थी उसके कई कपडे , बिँदिया , पलंग के बॉक्स से चादरे ....
मन खट्टा हो गया था उसका पिछले बरस कि अबकी बार आएँगी तो इनको अपना कमरा बिलकुल नही दूँगी सुनील मान लेने को तैयार ही न था इस बार उनकी बहन छोटे कमरे में रहे .
" निशा का मन अतीत में जाता हैं अक्सर . मायका तो उसका भी हैं वोह कभी दो दिन से ज्यादा के लिए नही गयी सुनील का कहना हैं ....
".रही थी न 22 साल उस घर में
अब भी तुम्हारा मन वहां ही क्यों रमता है ?
अपना घर बनाने की सोचो बस !!
अब यही हैं तुम्हारा घर ..."
अब .जब भी जाती हैंमायके तो अजनबियत का अहसास रहता हैं वहां , माँ बाबूजी उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहा उनके शब्दों का कोई मोल नही अब , जैसा बन जाता हैं खा लेती हैं निशा . बच्चे अगर जरा भी नखरे करे उनको आँखे तरेर कर चुप करा देती हैं चलते हुए माँ मुठ्ठी में बंद कर के कुछ रुपये थमा देती हैं और एक शगुन का लिफाफा 4 भाइयो की बहन को कोई एक भाई " हम सबकी तरफ से " कहकर थमा देता हैं ............न कुछ बोलने की गुंजाईश होती हैं न इच्छा .
किस्मत वाली होत्ती हैं न वोह लडकिया जिनको मायका नसीब होता हैं जिनके मायके आने पर खुशिया मनाई जाती हैं , माँ की आँखों में परेशानी के डोरे नही खुशी के आंसू होते हैं
टी वी पर सुधांशु जी महाराज बोल रहे थे बहनों को जो मान -सम्मान मिलता हैं जो नेग मिलता हैं उसकी भूखी नही होती वोह बस एक अहसास होता हैं कि इस घर पर आज भी मेरा र में आज भी हक हैं
निशा ने झट से आंसू पोंछे , फ़ोन उठाकर सुनील को उनके दूकान के नंबर पर काल किया
"सुनो जी , बाजार से गाजर लेते आना , निशा दी कल शाम की ट्रेन से आ रही हैं गाजर का हलवा बना कर रख दूँगी उनके चुन्नू को बहुत पसंद हैं "
कमरे की चादर बदलते हुए निशा सोचने लगी ना जाने रेखा दीदी ससुराल में किन परिस्तिथियों में रहती होगी कैसे कैसे मन मारती होगी छोटी छोटी चीजो के लिए . शायद यहाँ आकर उस पर अपना आधिपत्य दिखा कर उनका स्व संतुष्ट होता होगा . कम से कम किसी को तो मायका जाना सुखद लगे और खुश रहे उसके मन का रीता कोना !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
नीलिमा शर्मा
behtreen post....
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ ..निशब्द हूँ नीलिमा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत गहरी सोच के साथ बहुत बढिया सोच का परिचय दिया है
thank u sushma n anju
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