सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी,
सागर से मिलने की खातिर, नदिया हुई दीवानी ...
कल कल करती, जरा न डरती, झटपट दौड़ी जाती,
कितने ही अरमान लिए वो, सरपट दौड़ी जाती,
नई डगर है, नया सफ़र है, फिर भी चल पड़ी है,
तटबंधों को साथ लिए वो धुन में निकल पड़ी है,
पर्वत ने पथ रोका पर , उसने हार न मानी।।
सागर से मिलने ......
मटक मटक कर, लचक लचक कर, इठलाती, बलखाती,
बहती जाये नदिया रानी, गाती गुनगुनाती,
हवा ने रोका, गगन ने टोका, क्यूँ तुम जिद पे अड़ी हो,
सागर से मिलने की धुन में, हमको भूल चली हो,
बात न उसने मानी किसी की, करनी थी मनमानी ...
सागर से मिलने ......
सागर की लहरों ने पूछा, हम में मिल क्या पाओगी,
मिट जायेगा नाम तुम्हारा, खारा जल कहलाओगी,
नदिया बोली तुम क्या जानो, प्रेम लगन क्या होती है,
खुद को खो कर प्रिय को पाना, प्रेम की मंजिल होती है।।
जरा न बदली चाल नदी की , बदली नहीं रवानी ....
सागर से मिलने ......
लहरों ने दिवार बनाया, नदिया के रुक जाने को,
नदिया ने भी जोर लगाया, सागर से मिल जाने को,
जाकर नदी मिली सागर से, झूम उठा जग सारा,
जैसे कान्हा की बंशी सुन, नाच उठे ब्रिजबाला,
रस्ता रोक सकीं न उसका, वो लहरें तूफानी। ..सागर से मिलने ......
Anita Maurya