सखियों की बातें दिल से दिमाग तक...
मां तो आखिर मां हैं न...और बेटा चिंतित होता है कि ईलाज में पैसे कितना खर्च होगा..
माँ तो माँ ही होती है जिसे हमेशा अपने आप से ज्यादा अपने घर परिवार के सदस्यों की चिंता रहा करती है खास कर अपने बच्चों की सार्थक प्रस्तुति....
मृत्यु के समीप भी माँ को अपनी नहीं बच्चों की चिंता होती है..माँ आखिर माँ होती है...
बहुत खूब लिखा !! माँ की आखिरी सांस बच्चों में ही अटकी होती है
bahut bahut shukriya doston.. meri maa ke dil ki baat hai ye..
सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..
मां तो आखिर मां हैं न...
जवाब देंहटाएंऔर बेटा चिंतित होता है कि ईलाज में पैसे कितना खर्च होगा..
माँ तो माँ ही होती है जिसे हमेशा अपने आप से ज्यादा अपने घर परिवार के सदस्यों की चिंता रहा करती है खास कर अपने बच्चों की सार्थक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंमृत्यु के समीप भी माँ को अपनी नहीं बच्चों की चिंता होती है..माँ आखिर माँ होती है...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा !! माँ की आखिरी सांस बच्चों में ही अटकी होती है
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya doston.. meri maa ke dil ki baat hai ye..
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