रविवार, 6 मई 2012

...........'और सुबह हो गयी' ..........




.............रात का समय था ..करीब एक एक या डेढ़ बजा होगा ..सावित्री कुछ पढ़ रही थी सालों की आदत थी पढ़े बिना आज भी नींद नहीं आती थी .....ऋतु पास ही लेटी सो चुकी थी ....अचानक फोन बज उठा ....

.....इतनी रात को ????मन आशंकित हो उठा .....

..........घबरा कर उठाया ....कौन ?????.......नानी में रावी .........उधर से आवाज़ आई ......ओह !! हाँ बेटा क्या हुआ सब ठीक है ना ...??अरे नानी घबराओ मत एक अच्छी खबर है ...... वो चहक रही थी .......

..नानी में लुधियाना से बोल रही हूँ .....'वर्धमान' में मेरा चयन निश्चित है .....१५ दिन बाद मुझे ज्वाइन करना है ...

....और कल में पापा और अंश के पास चंडीगढ़ जा रही हूँ .........कुछ दिन वहां रह कर आपके पास आउंगी और पहली पोस्टिंग पर आप चलना मेरे साथ ...चलना होगा .....!.सावित्री ने सिर्फ शुरू के शब्द सुने और ख़ुशी से जैसे पागल ही हो गयी थी ......बस आशीर्वाद के कुछ शब्द मुह से निकले और ......फोन रख वो सीधा पूजा घर पहुँच गयीं थी ....भगवान् का शुक्रिया अदा करने के लिए ......दीपक जलाते -जलाते वो आठ वर्ष पहले पहुँच गयीं .....समय गति से चलता है और .....किसी के लिए नहीं रुकता मनुष्य को ही भाग कर या चल कर साथ देना होता है समय का ......

उन्हें सब याद आने लगा स्म्रतियां हावी हो गयीं .......उनकी नींद उड़ चुकी थी ......उन्हें अतीत में ले चला उनका मन .......???------------------------------------------------------------------------

सावित्री पूजा घर में हाथ जोड़े याचक बनी बैठी थी ......आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे .........कमरे से रह -रह कर ह्रदय विदारक चीखें कानो में पहुँच रही थी ....उसकी ३५ वर्षीय विवाहिता बेटी संध्या केंसर जैसे असाध्य रोग से जूझ रही थी .....जैसे ही पेट का दर्द असहनीय होता वो चीख उठती .......डाक्टर अपने हाथ खड़े कर चुके थे .....बस सहारा था दुआओं का ..... या किसी चमत्कार का !!!.......सावित्री अन्दर तक हिल जाती हर चीख के साथ ,परन्तु जानती थी कुछ नहीं हो सकता कोई कुछ नई कर सकता ....

बहन संध्या के पास बैठी उसकी अविवाहित बहन ऋतु जो बस बहन का हाथ पकड़ उदास बैठी थी ........
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संध्या रितेश के साथ शादी कर बहत खुश थी ,एक फार्म में अच्छी तनख्वाह के साथ अच्छे पद का स्वामी था रितेश .....अपने माता पिता का एक मात्र पुत्र था और अब उसके माता पिता भी नहीं रहे थे तो .....पत्नी और दो प्यारे -प्यारे बच्चों के साथ चंडीगढ़ में रहता था .........चौदह वर्षीय बेटी रावी और आठ वर्षीय पुत्र अंश .........बहुत खुश थे ....पता नहीं किस की बुरी नज़र इस खुशहाल परिवार को लग गयी ??

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अचानक संध्या को अपने पेट में कुछ भारी पन अनुभव हुआ ....उसने गेस समझ अपना घरेलू इलाज कर लिया ...परन्तु आये दिन समस्या रहने लगी तो उसने डॉक्टर के पास जाना बेहतर समझा .....डाक्टर ने बताया की उसके utras में एक गाँठ जैसा कुछ है ओपरेशन करना होगा .....वह थोड़ा घबराई परन्तु डाक्टर और रितेश के समझाने बुझाने पर तैयार हो गयी ...उसने अपनी विधवा माँ को भी बताना उचित नहीं समझा उसे लगा अपनी अनेक समस्याओं से जूझती उसके माँ परेशान हो जायेंगी ......आखिर ओपरेशन हो गया और सफल रहा परन्तु एक झटका तब तब लगा जब डाक्टर ने वो गाँठ बायोप्सी टेस्ट के लिए भेजी ओर टेस्ट पोजिटिव रहा ....

डाक्टर ने रितेश को बताया और साथ ही केंसर की लास्ट स्टेज कह गाज भी गिरा दी थी ....ठगा सा खडा रहा गया था ....रितेश ये सुन कर .....!!!...

..रिपोर्ट लेकर घर आया तो संध्या उसी की प्रतीक्षा में थी .....

क्या हुआ ..?.घर में घुसते ही सवाल उछाल दिया संध्या ने ....वैसे वो बहुत आश्वस्त नहीं लग रही थी ......लेकिन रितेश ने उस ओर ध्यान नहीं दिया और कहा 'आज डॉक्टर के पास जा नहीं सका '..

संध्या ने शंका भरी द्रष्टि उसकी ओर घुमाई परन्तु कुछ खोज न सकी ...शांत हो गयी .

..'कल ज़रूर ले आना ..वरना में ही चली जाउंगी कल' ......उसने जैसे धमकी दी रितेश को ....

'अरे नहीं तुम आराम करो में कल ले आउंगा' ......रितेश बोला और चिंतित हो कुछ सोचने लगा .......

कुछ दिन टालता रहा ...लेकिन कब तक ....???????..

एक दिन तो आना ही था .....और आ गया ,संध्या आखिर जान गयी कि उसके अंत का आरम्भ हो चुका है ......

..बहुत शांत प्रतिक्रिया थी ......शायद जानती थी वो पहले से कि ऐसा ही कुछ होने जा रहा है ..........

ओर अचानक उसने रितेश के कंधे पर सर रख दिया और बोली तुम्हे याद है पंडितजी क़ी बात ..???

-------------------------------------------------------------------------------------रितेश भी उसके साथ उन लम्हों में पहुँच गया ...अतीत ने आ घेरा उन्हें .......जब मम्मा के यहाँ एक पंडित जी से अचानक मिले थे और उन्होंने रितेश का हाथ देख कर कहा था तुम्हारी पत्नी बीच में ही साथ छोड़ कर चली जायेंगी ......पास बैठी बड़ी बहन से कहा था ....अगले दो साल में तुम अपना मकान बनवा लोगे ........सबने पंडितजी के जाने के बाद बड़ा ही मज़ाक बनाया था ............लेकिन जब बड़ी दीदी सुजाता ने फ्लेट खरीद लिया और उसके ग्रह प्रवेश के लिए सब लोग दिल्ली आये तो संध्या बड़ी ही परेशान और उदास थी .......रितेश ने बहुत पूछा लेकिन उसने कुछ नहीं बताया तो वो चुप हो गया लगा कोई ख़ास बात नहीं ...वो तो सोच भी नहीं सकता था संध्या के दिमाग में क्या चल रहा था ....?
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पंडितजी की कही बात अचानक संध्या के दिमाग में स्म्रतियों की सारी गर्द हटा सबसे आगे खड़ी थी , उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे ??................वो बहन की ख़ुशी में सम्मिलित होने आई थी लेकिन उसके आंसू उसका साथ नहीं छोड़ रहे थे ....

..ख़ुशी की इस गहमा--गहमी में कोई भी उसकी भावनाएं नहीं समझ सका था और वो भी कुछ व्यक्त नहीं कर पायी थी ......

लेकिन पंडितजी की कही दो बातों में से एक बात सत्य होने जा रही थी ..

यही डर संध्या को खाए जा रहा था ........कल दूसरी बात भी सत्य होगी और ...

..वो बात साधारण नहीं थी उसकी उसकी जिंदगी और मौत का सवाल था उसके परिवार का सवाल था ...

....रावी और अंश के मासूम चेहरे उसके सामने थे ......रितेश क्या करेंगे ....मेरे बाद ...बच्चों का क्या होगा ??

यही कुछ अनसुलझे सवाल उसके सामने मुह बाए खड़े थे और वो निरुत्तर थी .....!!

----------------------------------------------------------------अचानक रावी और अंश की आवाज़ ने उन्हें वर्तमान में ला खड़ा किया ..........मम्मा और पापा क्या सोच रहे थे .!..माँ क्या बनाया है ........?

रावी बोलते -बोलते समीप आ गयी ........कुछ भांप कर बोली क्या हुआ है मम्मा ???...

.'कुछ नहीं' .....संध्या उठी और बोली जाओ फ्रेश होकर आओ ...खाना लगाती हूँ .....

खाना खाकर अंश सो गया तो ..संध्या ने रावी को बुलाया .......और बिना कुछ कहे अपनी रिपोर्ट पढने के लिए दे दी ..........रावी ने पढ़ा और माँ से लिपट कर रो दी ......'पापा क्या सच है ये सब '..??.....रितेश से पूछा .......'हाँ बेटा तुम बड़ी हो समझदार हो ...मेरे बाद तुम्हे अपना पापा का और अंश का ध्यान रखना होगा '.........उत्तर संध्या ने दिया

लेकिन माँ हम इलाज करायेंगे .......आप अच्छी हो जाओगी ........बेटा ....अगर भगवानजी चाहेंगे तो में ज़रूर साथ रहूंगी लेकिन अगर नहीं !! तो मुझे जाना होगा ............रावी बड़ी थी सब समझती थी ......बहुत शांत हो गयी थी समय ने उसे ओर परिपक्व बना दिया था ....माँ का बहुत ध्यान रखती .............अंश को भी संभालती ...धीरे -धीरे बहुत से दायित्व ओढती जा रही थी ...ये बात संध्या को कचोटती उसका बचपन समाप्त हो रहा था ..........

................लेकिन फिर सोचती ....उसे ही सामना करना है अपने तरीके से करने दो .....!!लेकिन अकेले में संध्या जी भर कर रोती.....
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माँ को पता चला तो तुरंत ऋतु के साथ चली आई थीं ...........बहुत परेशान हो गयी थीं ...पति के जाने के बाद अकेले ही सम्भाला था सब कुछ उन्होंने ,बहुत साहसी महिला थी लेकिन अपने सामने पुत्री का घर तिनका -तिनका बिखरते नहीं देख पा रही थी .......पल--पल संध्या अशक्त ओर निर्बल हो रही थी ......अब दवाएं तो काम कर ही नहीं रही थी ...बस दुआ थी ......सुजाता दीदी भी आयीं थी ओर चारो माँ -बेटी मिल कर बहुत रोये थे ...

..आज सुजाता दीदी अपने ग्रह प्रवेश में संध्या की आँखों के आंसू का महत्त्व समझ रही थी ओर पश्चाताप था उन्हें कि इस द्वन्द को संध्या ने अकेले झेला था .....

..रावी और अंश को बहुत प्यार कर सुजाता दीदी लौट गयीं थी कब तक रहती !!उनका अपना संसार था ....फोन आते रहते पल -पल की खबर लेती
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संध्या को बिस्तर ने पकड़ लिया था डाक्टर ने बिलकुल मना कर दिया ..लेकिन संध्या हंसती और सबको हंसाने का प्रयत्न करती बाकी सब भी उस के साथ हँसते

और मौक़ा मिलते ही अकेले में जाकर सब रोते शायद कोई किसी को भी अपने आंसू नहीं दिखाना चाहता था ......सिर्फ अंश था जो इस सब से बे खबर हंसता--खेलता .....

चीखता--चिल्लाता अपने में मस्त रहता ...उसे पता भी नहीं था उसकी माँ जिसके बिना उसकी दुनिया में कुछ नहीं अब नहीं रहेगी ....छ साल का अंश .....

मौत की सच्चाई से अनभिग्य था ....सब उसके साथ मन बहलाते ..संध्या स्वयं ज्ज़यादा से ज़्यादा समय उसके साथ बिताना चाहती ...........संध्या से पूछ कर खाने का मीनू निश्चित होता लेकिन वो कुछ नहीं खा पाती .....पंडित जी की कही बात को संध्या ने दिल से लगा लिया था ख़ास तौर पर जब , जब उसने देखा कि सुजाता दीदी से पंडित जी ने जो कहा था सच हो गया और यही बात उसके मनोबल को तोड़ने लगी ....उसकी इच्छा शक्ति तार -तार हो बिखरने लगी

और ......उसके जीने की चाह समाप्त होती नज़र आने लगी लाख प्रयास के बाद भी परिवार के सभी सदस्य उसके बिखरते मनोबल को समेट नहीं पाए

इसी बीच रावी ने १० वी ८५ % अंको के साथ पास की ......तो माहौल ओर ग़मगीन हो गया

संध्या के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे ......इस ख़ुशी ओर ग़म को सबने साथ मिल कर मनाया
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आज जब सावित्री पूजा घर में गयी तो बेचैन थी ..संध्या सुबह से परेशान थी .....बहुत तकलीफ में थी ....ऋतु उसके पास थी .....

रावी का मन नहीं था स्कूल जाने का लेकिन आवश्यक टेस्ट था जाना पडा ......अंश को भी ले गयी थी वो ...ओर सोचा भी नहीं था .लौट कर माँ नहीं मिलेंगी ......अंश तो समझ ही नहीं पाया क्या हुआ है ..क्यों भीड़ जमा है ........??.....सुजाता का बुरा हाल था वो समय रहते आ नहीं पायी ..

संध्या ने किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं की....... माँ और ऋतु से ही अंतिम विदा लेली .........

सावित्री कब तक रहती ...उसे भी बेटी की पढ़ाई पूरी करानी थी ......उसने बच्चों को साथ लाने प्रस्ताव रखा लेकिन रितेश ने मना कर दिया
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उसके बाद के आठ साल बड़े निर्णायक रहे ,.. बड़ा उतार -चढ़ाव रहा जिंदगी में रावी बी टेक करने कानपुर चली गयी .......अंश को समय ने बड़ा कर दिया ...रावी के होस्टल जाने के समय अंश मात्र नौ साल का था ......

लेकिन उसने स्कूल से आने के बाद अपना खाना बनाना उसने सीख लिया था.......

ये वही अंश था दीदी के सामने बड़े नखरे करता .....माँ के सामने तो स्कूल से आने का मतलब भी नहीं समझ सका ...
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जब सावित्री सुनती .....उसकी आत्मा पर बोझ रहता ...लेकिन लाचार थी .....वहां जा नहीं सकती थी और रितेश बच्चों को यहाँ नहीं छोड़ते थे ......

.छुट्टियों में बच्चे आते तो नानी और मौसी सब सारा लाढ़ निकालते और हर तरह की नयी -नयी चीज़ मौसी बना कर खिलाती .....घर में मानो उत्सव शुरू हो जाता लेकिन उनके जाते ही वो सारी खुशियाँ , सारा उत्साह मानो साथ ले जाते .......
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समय बीत रहा था ...कहते हैं दुःख के लम्हे अपनी गति धीमी रखते हैं .......बड़ी लम्बी होती है अमावस की रात .....लेकिन उसके बाद सुबह निश्चित है ...

....आज रावी की पोस्टिंग हो गयी थी लुधियाना ....अंश भी अपनी तैयारी में लगा था

और सावित्री को लगा आज संध्या की आत्मा को शान्ति मिली

.काली रात बीत रही थी ......भोर की पहली किरण आना ही चाहती थी ....चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी .सावित्री उठी ओर दरवाज़ा खोल दिया ...बाहर सूरज निकलने को था .........आज की ये सुबह नयी थी ..बहुत ख़ास .......

सावित्री का अतीत तक चमक उठा था इस रौशनी से .............सावित्री ने पुकारा ....ऋतु उठ सुबह हो गयी ........

...ओर सचमुच सुबह हो गयी थी ...............
..
- अरुणा सक्‍सेना

8 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक प्रस्तुति .... पर रात के बाद भोर तो हुई

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  2. उत्साहवर्धन हेतु सभी मित्रों का हार्दिक आभार

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  3. उत्साहवर्धन हेतु सभी मित्रों का हार्दिक आभार

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..