गुरुवार, 21 जुलाई 2011

ना समझ सकेगा चलन बेदर्द ज़माने का ,
गर संभालना भी चाहो तो वक़्त भी नहीं ,
लेगा कहाँ तक जाकर दम ,ए जिंदगी के मुसाफिर ,
इस राह तो कोई दरख्त भी नहीं**

2 टिप्‍पणियां:

  1. कही दिल ना लगाना उस राह मे ए दोस्तो ,उस राह गुजरे कई दिल तन्हा |

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  2. बहुत सुंदर लिखा है ... लेगा कहाँ तक जाकर दम ,ए जिंदगी के मुसाफिर ,
    इस राह तो कोई दरख्त भी नहीं...वाह क्या बात लिखी है ....

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..