' स्त्री'
नहीं निकल पायी कभी,
'देह' के दायरे से बाहर
चाहे वो सलवार कुर्ते में,
शरमाती, सकुचाती सी हो
चाहे, इस सो कॉल्ड
मॉडर्न सोसाइटी की
खुले विचारों वाली,
कुछ नजरें बेंध ही देती हैं
उनके जिस्म का पोर पोर,
भरी भीड़ में भी.
'कभी देखना'
किसी गश खा कर गिरती हुई
लड़की को,
'देखना'
कैसे टूटते हैं, 'मर्द'
उसकी मदद को,
और टटोलते हैं,
'उसके' जिस्म का 'कोना - कोना' ।
'देखना'
किसी बस या ट्रेन में
भरी भीड़ में चढ़ती हुई
'स्त्री' को,
और ये भी देखना,
'कैसे' अचानक दो हाथ
उसके उभारों पर दबाव बना,
गायब हो जाते हैं.
देखना बगल की सीट पर बैठे
मुसाफिर के हाथ नींद में कैसे
अपनी महिला सहयात्री के
नितम्बों पर गिरते हैं।
जवान होती लड़कियों को
गले लगा कर
उनके उभारों पर हाथ फेरते
रिश्तेदारों को देखना,
और फिर कहना,
क्या अब भी है 'स्त्री'
देह के दायरे से बाहर।
नहीं निकल पायी कभी,
'देह' के दायरे से बाहर
चाहे वो सलवार कुर्ते में,
शरमाती, सकुचाती सी हो
चाहे, इस सो कॉल्ड
मॉडर्न सोसाइटी की
खुले विचारों वाली,
कुछ नजरें बेंध ही देती हैं
उनके जिस्म का पोर पोर,
भरी भीड़ में भी.
'कभी देखना'
किसी गश खा कर गिरती हुई
लड़की को,
'देखना'
कैसे टूटते हैं, 'मर्द'
उसकी मदद को,
और टटोलते हैं,
'उसके' जिस्म का 'कोना - कोना' ।
'देखना'
किसी बस या ट्रेन में
भरी भीड़ में चढ़ती हुई
'स्त्री' को,
और ये भी देखना,
'कैसे' अचानक दो हाथ
उसके उभारों पर दबाव बना,
गायब हो जाते हैं.
देखना बगल की सीट पर बैठे
मुसाफिर के हाथ नींद में कैसे
अपनी महिला सहयात्री के
नितम्बों पर गिरते हैं।
जवान होती लड़कियों को
गले लगा कर
उनके उभारों पर हाथ फेरते
रिश्तेदारों को देखना,
और फिर कहना,
क्या अब भी है 'स्त्री'
देह के दायरे से बाहर।
16 aane sach ko bya karte shabad ,man ko chu lene vali kavita Aruna ji bahut bahut badhai ji
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएं