बुधवार, 23 नवंबर 2011

राधा का गीत


मुझे दोष मत देना, मोहन,
   मुज पर रोष  न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
  मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू   , पर  नहीं थकाना
 जलती हू पर होश न हरना     
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
 इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
 जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
 कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसूरत भावो से रची सुन्दर रचना.....

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  2. दिवस जलाता , निशा रुलाती,
    मन की पीड़ा दिशा भुलाती
    कितनी दूर सपन है तेरे
    कितनी तपन मुझे जुलसाती
    चलती हू , पर नहीं थकाना
    जलती हू पर होश न हरना डॉ हंसा आपने राधा की विरह पीड़ा को बखूबी चित्रण कर दिया है ।

    जवाब देंहटाएं

सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..