मुझे दोष मत देना, मोहन,
मुज पर रोष न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू , पर नहीं थकाना
जलती हू पर होश न हरना
मोहन,
मुझ पर रोष न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
मुझ पर रोष न करना !
मुज पर रोष न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू , पर नहीं थकाना
जलती हू पर होश न हरना
मोहन,
मुझ पर रोष न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
मुझ पर रोष न करना !
बेहद खुबसूरत लिखा है..
जवाब देंहटाएंshukriya Amrita ji
जवाब देंहटाएंसुन्दर मनुहार
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत भावो से रची सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat shabd....
जवाब देंहटाएंदिवस जलाता , निशा रुलाती,
जवाब देंहटाएंमन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू , पर नहीं थकाना
जलती हू पर होश न हरना डॉ हंसा आपने राधा की विरह पीड़ा को बखूबी चित्रण कर दिया है ।
bahut sundar!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत भाव.......
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar..
जवाब देंहटाएंBahut hi sunder
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