मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

गुड़ी पड़वा

गुड़ी पड़वा
 हमारी सनातन संस्कृति को और अच्छी तरह जानने के लिए यह त्यौहार उपयोगी  है।वैसे तो हमारे भारतवर्ष में हर दिन त्यौहार ही होता है पर कुछ विशेष दिन होते हैं जो सदियों से मनाए जा रहे हैं। हमारे हिन्दू नववर्ष का पहला दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा होता है।इस दिन विक्रम संवत्सर का आरंभ माना जाता है।कहते हैं इसी दिन ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।इसी दिन चैत्र नवरात्रि आरंभ होते हैं।
इस दिन को वर्ष प्रतिपदा नवसंवत्सर या गुड़ी पाड़वा भी कहते हैं।गुड़ी का अर्थ "विजय पताका"होता है।मान्यता है कि शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से शकों का पराभव किया था।इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।चैत्र के महीने में ही वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती है।
महाराष्ट्र में यह पर्व गुड़ी पाड़वा के रूप में मनाया जाता है।इस दिन महाराष्ट्र के प्रत्येक घर के द्वार पर या छत पर गुड़ी उभारकर  उसकी पूजा की जाती है।इसके लिए बांस की लम्बी काठी के एक छोर पर जरी का लाल या केसरिया कपड़ा लगाते हैं। फिर उस पर शक्कर के बतासों की माला,आम के पत्ते,नीम के पत्ते, फूलों का हार ये सब बांधकर उस पर तांबे का कलश उल्टा रखते हैं। फिर ये काठी दरवाजे पर या छत पर बांध देते हैं।तांबे का कलश उल्टा लगाने के पीछे मान्यता है कि ब्रम्हांड की सारी सकारात्मक ऊर्जा को ये तांबे का कलश आकर्षित करके पृथ्वी में भेजता है। अर्थात घर की नींव में सकारात्मक ऊर्जा जाने से और मजबूत होती है।इसकी विधिवत पूजा कर नैवेद्य अर्पित किया जाता है।घर के आंगन में रंगोली बनाते हैं।द्वार पर आम के पत्ते और हजारे के फूलों की बंदनवार लगाते हैं।ये सभी कार्य सूर्योदय के तुरंत बाद में किए जाते हैं।संध्या समय सूर्यास्त पूर्व ही ये गुड़ी उतारकर प्रसाद सबको बांट देते हैं।
नैवेद्य के लिए पूरण पोळी बनाते हैं जिसमें चना दाल,गुड़,नमक,नीम के फूल,इमली और कच्चा आम होता है।
गुड़ मिठास के लिए,नीम के फूल कड़वाहट के लिए,इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होता है।आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है पर महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है।यह दिन वर्ष के साढ़े तीन मुहुर्त में से एक मुहुर्त भी माना जाता है।इस दिन कोई भी शुभ कार्य शुरू करें तो उसका फल बहुत बढ़िया मिलता है।
तो सखियों ऐसा देश है मेरा जहां हर उत्सव के पीछे एक कहानी है। मैं हूं तो मारवाड़ी पर विवाह के बाद महाराष्ट्र में आ गई तो यहां के उत्सव यहीं के अनुसार मनाती हूं।
लेखिका- भारती पंचारिया शर्मा
  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को    "भारत में जनतन्त्र"  (चर्चा अंक -3609)    पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. भारत में अनगिनत त्योहार हैं और एक और क्षेत्रीय त्यौहार के बारें में जानकर बहुत अच्छा लगा ,सादर नमन आपको

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..