रविवार, 25 दिसंबर 2011

प्रेम - आज के परिपेक्ष्य मे

यूँ तो ना गयी वहाँ, कोई खबर.. पर आहों के खामोश असर
पैगाम हुए ......बदनाम हुए ..
यूँ तो ना दिए , कुछ सुख हमको .. पर उनसे जो पहुचें दुख हमको
इनाम हुए ..बदनाम हुए
जब होने लगे ये हाल अपने .. शब रोशन साफ़ खयाल अपने
इबहाम हुए .....बदनाम हुए                                   
  इतने गहराई लिए शब्द सेतु ... क्या पढ़ कर अनायास ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है  कि इसे रचने के  लिए किस कदर का प्रेम महसूस किया होगा नायिका ने
"प्रेम " जिसे कबीर ने ढाई अक्षर मे खोजने को कहा ,  और  जाने कितनी हजारो कालजयी कृतिया प्रेम पर उतार दी गयी , मगर लगता है शब्द रचना से इसे पूर्ण  समेटा ना जा सकेगा कभी ।  मगर कृष्ण ने इस पर पूरी कृष्ण लीला ही रच दी ,
प्रेम को छु लेने का साहस जो कृष्ण ने किया वो युगो युगो तक कोई पुरुष ना कर पाया 
कृष्ण को इसीलिए सम्पूर्ण युग पुरुष की संज्ञा से नवाजा गया है । नीति विशेषज्ञ कृष्ण ने प्रेम मे कोई नीति निर्धारित ना की मगर क्या वे राधा की विरह को उतनी गहराई से समझ पाये , कुछ का मानना है नहीं , वे इसे समझते तो राधा को इस तरह विरह के जंगल मे झुलसने ना देते । मगर कुछ इस प्रेम को  देह के परे मान कर  राधा की विरह बेला को भी कृष्ण लीला मे समाहित कर गए । 

मगर क्या किसी ने सोचा है  आज भी हजारो ,लाखो नारिया  अपने जीवन काल मे राधा स्वरूप को जी रही है  , चाहे वो पत्नी रूप मे है या प्रेमिका ... प्रेम तो दोनों करती है अपने नायक से ... तभी तो  जहा  रिश्ते मे  प्रेम है वहा आज भी कृष्ण और राधा स्वरूप आमने सामने  आते है , तब  आज भी हर  स्त्री पुरुष बंधन अपनी एक अलग कहानी रचता है ,अत  जहा प्रेम है वहा वेदना है जहा वेदना है वहा पहले दुख , फिर तकलीफ और फिर विरह घर बनाते जाते है ,  इसीलिए जहा हर नारी  को उदासी के उस अथाह समुंदर मे गोते लगाते देखा जा सकता है , वही पुरुष उसके  अंत करण मे जाने कितने  यहा वहा बिखरे  खारे पानी के मोतियो  को  समेट कर माला गूँथने मे असफल रहा है   ।प्राचीन काल से आज तक मे  चाहे जीतने युग बदले हो मगर प्रेम का यह स्वरूप नहीं बदला...क्योकि आज भी प्रेम की कृष्ण बिना अधूरी है ... अब जहा प्रेम है वहा या तो मिलन  होगा या विरह .. कृष्ण ने अपने पूरे जीवन काल में अपनी  अपनी लीला दिखाई परंतु फिर क्यो राधा को अकेला छोड़ कर मथुरा चले गए ... वजह मिलन से भी उच्च होता है विरह ।
विरह मे ही प्रेम की उच्च कोटी की भावना छिपी होती है यहा  प्रेमीसिर्फ प्रेम करता है अपने प्रेम के बदले उसे कुछ नहीं चाहिए ।
अब इसी प्रेम की तुलना आज के प्रेम से कीजिये - पति - पत्नी मे प्रेम है मगर यहा भी कुछ स्वार्थपरता जुड़ी है जब तक एक स्वार्थ है प्रेम खींचता चला जाता है जब लक्ष्य अलग होते है तो अलगाव शुरू हो जाता है    इसे हम विरह तो ना कहेंगे । मगर फिर भी क्यो प्रेम का अस्तित्व आज भी मौजूद है धरती पर ... प्रश्न यू ही रहेगा उत्तर आप खोजिए । 

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर नहीं मिलने वाला इसका ..विचारणीय पोस्ट

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  2. बहुत बढ़िया है ..!! .लगता है में पहले भी सैर कर चुकी हूँ इस दुनिया की बिना वीजा के ही, हा हा

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  3. ।प्राचीन काल से आज तक मे चाहे जीतने युग बदले हो मगर प्रेम का यह स्वरूप नहीं बदला...क्योकि आज भी प्रेम की कृष्ण बिना अधूरी है ... अब जहा प्रेम है वहा या तो मिलन होगा या विरह .. कृष्ण ने अपने पूरे जीवन काल में अपनी अपनी लीला दिखाई परंतु फिर क्यो राधा को अकेला छोड़ कर मथुरा चले गए ... वजह मिलन से भी उच्च होता है विरह ।
    विरह मे ही प्रेम की उच्च कोटी की भावना छिपी होती है यहा प्रेमीसिर्फ प्रेम करता है अपने प्रेम के बदले उसे कुछ नहीं चाहिए ।

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  4. ।प्राचीन काल से आज तक मे चाहे जीतने युग बदले हो मगर प्रेम का यह स्वरूप नहीं बदला...क्योकि आज भी प्रेम की कृष्ण बिना अधूरी है ... अब जहा प्रेम है वहा या तो मिलन होगा या विरह .. कृष्ण ने अपने पूरे जीवन काल में अपनी अपनी लीला दिखाई परंतु फिर क्यो राधा को अकेला छोड़ कर मथुरा चले गए ... वजह मिलन से भी उच्च होता है विरह ।
    विरह मे ही प्रेम की उच्च कोटी की भावना छिपी होती है यहा प्रेमीसिर्फ प्रेम करता है अपने प्रेम के बदले उसे कुछ नहीं चाहिए ।

    virah me hi prem ki uchch koti ki bhavna chhipi hoti hai .... bahut sundar lekh praveena sakhi !!

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..