चाहत चक्रवात की....!!!!
सागर की सी विशालता
हो न हो मुझमे लेकिन,
भावनाए तो लहरों सी
उमड़ रही है...!!
लहरों की तरह
बहती है ये भी
निरंतर.....
छू के मेरे तन-मन को
ये मुझे भिगो रही है!!!
सिर्फ़ इन में भीग के
जीना नही चाहती मै,
चाहत मेरी की
इनमे तूफ़ान आए,
आए चक्रवात
और सुनामी!!
ताकि हो मन-मंथन मेरा
और विष-विचारो (विषयो)का
हो निकास..!!!
रह जाए मन में
भावनाओ का अमृत
और करू मै अपना आत्मविकास !
जीत के अपनी अंतरात्मा को
साक्षात्कार करू परमात्मा का,
पाकर उसकी स्नेहिल छाया
स्मरण करू अपने श्याम का!!...कविता राठी..
हो न हो मुझमे लेकिन,
भावनाए तो लहरों सी
उमड़ रही है...!!
लहरों की तरह
बहती है ये भी
निरंतर.....
छू के मेरे तन-मन को
ये मुझे भिगो रही है!!!
सिर्फ़ इन में भीग के
जीना नही चाहती मै,
चाहत मेरी की
इनमे तूफ़ान आए,
आए चक्रवात
और सुनामी!!
ताकि हो मन-मंथन मेरा
और विष-विचारो (विषयो)का
हो निकास..!!!
रह जाए मन में
भावनाओ का अमृत
और करू मै अपना आत्मविकास !
जीत के अपनी अंतरात्मा को
साक्षात्कार करू परमात्मा का,
पाकर उसकी स्नेहिल छाया
स्मरण करू अपने श्याम का!!...कविता राठी..
wah! kavita tum hamesha se hi bahut achcha likhti ho .......
जवाब देंहटाएंसागर की सी विशालता
जवाब देंहटाएंहो न हो मुझमे लेकिन,
भावनाए तो लहरों सी
उमड़ रही है...!!आपकी रचना का मुझे सदैव इंतजार रहता है जानती हु शानदार अभिव्यक्ति होगी |