सोमवार, 8 अगस्त 2011

नसीब औरत का...

सहमी है नज़र, सहमा है मन, यूँ भी देखा है तकदीर बदलते हुए,
इक पल भी नहीं लगता, इंसान को हैवान बनते हुए....

इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....

दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....

कोई गवाह नहीं, न कोई हमख्याल है,
यूँ गुजरते हैं लोग, जैसे हर नज़र अनजान है...

क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए....

                                                  !!अनु!!


8 टिप्‍पणियां:

  1. इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
    कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....

    दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
    अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....

    विचारणीय भाव.... मन को उद्वेलित करती पंक्तियाँ

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  2. कोई गवाह नहीं, न कोई हमख्याल है,
    यूँ गुजरते हैं लोग, जैसे हर नज़र अनजान है...wah Anu

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  3. इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
    कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....

    दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
    अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....

    बहुत कड़ुवा सच....

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  4. क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
    कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए....बहुत खूब अनीता जी आपके इस रंग से तो वाकिफ ना थे |

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  5. hridaya ko vichlit kerne wali ek rachana..khaas kerke ye panktiyan

    कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते...

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  6. क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
    कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए..
    bahut hi sudar prastuti ,

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..