दोपहर मे बतियाती महिलाए
कहती कुछ उधर कुछ इधर का
बुनती सपना खिलखिलाती हुई
चहकती उस वृक्ष पर, पंख फड़फड़ाती हुई
चहकती उस वृक्ष पर, पंख फड़फड़ाती हुई
मगर शाम के ढलने तक अपने पंख समेट कर
दुबक जाती चुप करके,, रात गहराती देख कर
समय ही सिखाता है ,रुलाता है , हँसाता है यह हम सभी जानते है ,, मगर समय चक्र का असर हमारे मन मस्तिष्क पर कई महीनो सालो का ही नहीं पूरे एक दिवस से भी होता है ,आज हम इसी चक्र की विवेचना करेंगे ,, पुरुष और स्त्री एक सिक्के के दो पहलू हो सकते है परंतु दोनों के सोचने और काम करने का तरीका भिन्न होता है ,पुरुष जहा एक बार मे एक ही परिस्थिति के बारे मे सोचते है वही महिलाए एक बार मे कई घटनाओ औरपरिस्थितियों पर विचार कर सकती है , यही कारण है महिलाए एक दिन मे भिन्न भिन्न कार्य को आसानी से कर लेती है वही पुरुष नौकरी प्रधान कार्य ही कर पाते है | यहा मै आज घरेलू महिलाओ पर दिन बीतने के बाद शाम के ढलने के साथ उठने वाली घुटन ,सिहरन का कारण खोजने का प्रयास करूंगी |
1) वैज्ञानिक कारण -सुबह सवेरे सूर्य की रोशनी आशा की किरण लाती है , रात भर की थकान मिटने के बाद सूर्य की तेज रौशनी और ताजी हवा मन को प्रसन्न करने के साथ ऊर्जा का संचार लाती है जैसे जैसे दिन गुजरता जाता है ऊर्जा और रौशनी का हास होने लगता है ,, दिन ढलने और रात होने के बीच का यह समय संध्या काल कहलाता है , इस समय अक्सर गृहणीया अपना काम खत्म कर चुकी होती है सुबह सवेरे से किए कार्यो के कारण थकान के साथ दिनभर का लेख जोखा भी उनके सामने होता है , परिणाम यदि विपरीत हो तो यह खिन्नता को और भी बढ़ा देता है , और ऐसे मे अकेलापन हो तो महिला डिप्रेस भी हो सकती है | उस समय परिवार के अन्य सदस्यो का साथ अवश्यंभावी है |
2) वातावरणीय कारण --शाम के धुंधलके मे महिलाओ का प्रभावित होना उनके आस पास के वातावरण पर भी निर्भर है , यदि आपका घर पहाड़ी घाटी या ऐसे इलाके मे हो जहा बारिश और बादलो का जमघट वर्ष पर्यन्त रहता है तो यह वातावरण मन पर तुरंत प्रभाव डालता है ,, क्योकि लगातार बने बादल सूर्य की रौशनी के प्रभाव को कम करते है ,, और घर मे नमी का वातावरण बनाते है शरीर और मन से निकलने वाली ऊर्जा किरण बादलो से टकरा कर नेगेटिव प्रभाव उत्पन्न करती है , चिड़चिड़ाहट बनने की वजह भी वही बनती है ,,दूसरा , यदि आपका घर मैदानी इलाको मे होने के बावजूद ऐसा ही कुछ महसूस होता हो तो यह ध्यान रखने योग्य बात है कि काही आपके घर मे सूर्य कि रौशनी और हवा का प्रवेश कम तो नहीं है ,, यदि ऐसा है तो शाम के समय अपने घर के खिड़की दरवाजो को खोलने मे देरी नहीं करनी चाहिए | ऐसे मे यह भी जरूरी है की आप अपना ध्यान उन कार्यो मे लगाए जो आपके मन को प्रसन्न करते हो ,जैसे संगीत सुनना ,घूमने जाना , किसी कार्य मे नए प्रयोग करना ,आस पास के लोगो से बात करना इत्यादि कार्य आपके मूड को खराब होने से बचाएंगे इसमे कोई संदेह नहीं है |मै इसमे उदाहरण दूँगी ,मेरी उन सखियो का जो इस प्रभाव से प्रभावित होती आई है , एक आनंदी रावत ,जिनका घर पहाड़ी इलाके मे है दूसरी कविता राठी जो मैदानी इलाके से है परंतु घर सातवे माले पर होने के साथ ही बंद भी रहता है |
3) ज्योतिषीय कारण - ज्योतिषीय आधार पर संध्या का समय "शुक्र का प्रभाव " कहलाता है , जो अंधेरे के साथ बढ़ता जाता है ,, इस समय महिलाओ को घर मे मौजूद मंदिर मे दीपक जला कर घंटा ध्वनि के साथ इस काल का स्वागत करे |इसके अलावा वैभव पूर्ण सुविधाओ का उपभोग करे तो इससे बचा जा सकेगा |
इस लेख मे मैंने जिन बिन्दुओ पर प्रकाश डाला है वे सभी व्यक्ति गत अनुभवो के आधार पर एकत्रित है यदि आपके पास इसके अलावा अन्य उदाहरण या कारण हो तो आप हमे मार्गदर्शन जरूर दे ताकि महिलाए खास कर मेरी सखिया आपके विचारो से लाभान्वित हो सके |
Bahut Badia...Praveena Sakhi...Aap ne Bahut achha likha hai...Har Bindu per Roshni dali hai,koi point nahi chhoda,aage bhi aise likti rahiye,
जवाब देंहटाएंअच्छा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ...
जवाब देंहटाएंachcha likha aapne Parveena ji
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें
प्रवीणा जी नमस्कार। सुन्दर विश्लेषणात्मक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबुनती सपना खिलखिलाती हुई
जवाब देंहटाएंचहकती उस वृक्ष पर, पंख फड़फड़ाती हुई
मगर शाम के ढलने तक अपने पंख समेट कर
दुबक जाती चुप करके,, रात गहराती देख कर.
खूबसूरत प्रस्तुति.