एक कविता लिखनी है
मेरे भीतर अक्सर उठती है आवाजें ,
वोह जो तुम अपने लफ्जों से कह जाते हो ,
वोह फुसफुसाती जो तुम सरगोशी कर जाते हो ,
वोह लफ्ज़ जो जागते हैं भीतर मेरे नींद में भी ,
जो सो जाते हैं मेरे चिंतन में जागते हुए भी .................
वोह लफ्ज़ आज बिखरे हुए हैं सब तरफ मेरे सामान की भीड़ में ..
जरा ठहर तो साथी मेरे ............
जरा समेट लूं उनको अपने दामन में ..............
तेरे साथ बैठ कर एक नयी "कविता " जो लिखनी है मुझे ..~
- नीलिमा शर्मा
मेरे भीतर अक्सर उठती है आवाजें ,
वोह जो तुम अपने लफ्जों से कह जाते हो ,
वोह फुसफुसाती जो तुम सरगोशी कर जाते हो ,
वोह लफ्ज़ जो जागते हैं भीतर मेरे नींद में भी ,
जो सो जाते हैं मेरे चिंतन में जागते हुए भी .................
वोह लफ्ज़ आज बिखरे हुए हैं सब तरफ मेरे सामान की भीड़ में ..
जरा ठहर तो साथी मेरे ............
जरा समेट लूं उनको अपने दामन में ..............
तेरे साथ बैठ कर एक नयी "कविता " जो लिखनी है मुझे ..~
- नीलिमा शर्मा
वोह लफ्ज़ जो जागते हैं भीतर मेरे नींद में भी ,
जवाब देंहटाएंजो सो जाते हैं मेरे चिंतन में जागते हुए भी .................
बहुत उम्दा...
neeli...
जवाब देंहटाएंle ruk gai...likh le mujhe...:))
jokes apart...Neeli..very well written....B'ful xpression...
जरा ठहर तो साथी मेरे ............
जवाब देंहटाएंजरा समेट लूं उनको अपने दामन में .............. ati sundar...
लफ्जो को समेटने की कोशिश अच्छी बन पड़ी है नीलिमा जी
जवाब देंहटाएंshukriya frds
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