भोर की प्रथम बेला में
क्षितिज की नारंगी किरणे
जब धरा को सहलाती है
मुझे एक याद आती है
जेठ ,अषाढ़ की तपन के बाद
जब सावन की ऋतु आती है
घनघोर बदरिया छाती है
मुझे एक याद आती है
पतझड़ की आंधी के बाद
अंगड़ाई लेती दरख़्त पर
जब नयी कोपलें आती हैं
मुझे एक याद आती है
सर्द सर्द रातों में
ठिठुरन को दूर करती जब
चाँद की शीतल तपिश तपाती है
मुझे एक याद आती है
सबका इंतजार ख़त्म हुआ देख
मेरे ह्रदय को बहुत तडपाती है
मेरी आँखों की नमी
हर पल आभास तुम्हारा करातीं हैं
मुझे एक याद आती है ..... शोभा
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