क्यों सब कुछ खाली सा लगता है..
आंखे भरी है आँसू ओ से फिर भी आँखो में शुन्यता
है ,
दिल है दर्द और ख़ुशी यो से भरा..
फिर भी दिल वीरान लगता है..
बाहों में जुल रही है कितनों की बाते..
जिसे गले लगाकर हम फिरते है पूरा दिन..
फिर भी एक अकेलापन सा लगता है..
जब भी तलाशती हुं खुद को..कभी अकेले में..
तो वो अकेलापन जैसे घुटन सा लगता है..
छोड़ दिया है अब खुद की परेशानियों को सोचना..
दिन रात जैसे जिंदगी का सिर्फ आना जाना लगता है..
नीता कोटेचा..
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