शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

एक बार ओ मायड़ म्हारी..थारे पास बुला ले..!!

माँ ..
आवे हे जद
ओ सावण मास
मनडो म्हारो होवे
घणो उदास..!!
आंख्या राह निहारे
हियंडो थाने पुकारे
एक बार ओ
मायड़ म्हारी..
थारे पास बुला ले..!!
सावणीये री तीज आई...
आंख्या म्हारी यूँ भरी..
ज्यूँ भरे सावण में
गाँव री तलाई..!!
मायड़ म्हारी!!
काई बताऊँ थाने..
अवलु थारी कत्ती आई..!!
कित्ती सोवणी लागती
वा मेहँदी भरी कलाई
रंग बिरंगी चुडिया
भर भर के सजाई..!!
लहराता लहरिया सावण में
मांडता हींडा बागां में..
झूलती सहेल्यां साथ
आ लाडेसर थारी जाई..!!
आंवतो राखडली रो तींवार
भांव्तो बीराजी रो लाड
हरख कोड में आगे लारे
घुमती भुजाई..!!
ओ बीराजी म्हाने
आप री अवलु घणी आई..!!

भादरिये री तीजडली री
जोउं बाट बारे मास...
सिंजारे में माँ बनावती
पकवान बड़ा ही खास..!!
तीजडली रो सूरज उगतो..
बनता सातुडा अपार
कजली पूजता आपा सगळा..
तले री पाळ में खोस
नीमडी-बोरडी री डाळ..!!
जवारा री पूजा करने
पिंडा पूजता..
दीपक जलायणे तले में..
सोनो..रूपों..चुन्दडी निरखता..
बाबोसा बेठने डागोल
बाट चान्दलिये री जोंवता..
आंवतो चांदो..खुशिया लान्वतो..
हरख सगळा रो मन में ना मांव्तो
अरग दे पिंडा परासता..
बातां सगळी आवे याद
ओ मायड़ म्हारी..
कई बताऊँ थाने हिन्वडे रो हाल..!!
आ तीजडली आप रे सागे
यादां घणी लाइ..
ओ बाबोसा म्हारा..म्हाने
आप री अवलु घणी आई..!!!कविता राठी..

10 टिप्‍पणियां:

  1. कविता जी ,माफ करे आधी पोस्ट पढ़ने तक ही आंखे डबड़बाने लगी ,दिल रो उठा अपनी मायड़ को याद करते हुए ,आपने बहुत अच्छी रचना लिखी है |साभार

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  2. आ तीजडली आप रे सागे
    यादां घणी लाइ..
    ओ बाबोसा म्हारा..म्हाने
    आप री अवलु घणी आई..!!

    जीवतां जी तो मायड़ नै कोनी भुल्यो जा सके। भावभरी रचना र लिए थाने साधुवाद। आज सुं थारे ब्लॉग का नियमित पाठक बण ग्या।

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  3. bhut hi manbhavan mun ko choone vali rachna,mun dervit ho gya{geeta purohit}

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..