रविवार, 31 जुलाई 2011

**** बचपन क़ी सहेली ****

 

आज फिर ख्वाब में वो आई ...
सहेली थी मेरे बचपन की !

वो पलाश के पेड़ो से घिरे ..
मुझे मेरे स्कूल की याद आई !

वो स्कूल का मध्यांतर ...
और वो मस्ती याद आई !

वो सहेलियों संग बैठना ..
वो रूठना मनाना ...

सुन्दर चित्रों से वो ...
पेन्सिल के डिब्बे को सजाना ...

चुपके से बगिया से फूल चुराना ..
फिर वो माली की फटकार याद आई!

आज भी वो सहेली ..
बहुत याद आती है ..
ख्वाबों में मेरे वो अक्सर आती है !

काश तुम मिलती ,साथ बैठते...
बचपन के वो पल...
फिर से हम जी लेते !!

आज फिर ख्वाब ........

!!!! शोभा !!!!

3 टिप्‍पणियां:

  1. wah....... bachpan ki saheli
    bethti hogi jab
    tu bhi aaine ke samne
    yaad karte hue
    apne beete hue
    dino ko
    aaine mai apne aks k sath
    tujhe kya kabhi mera bhi nazar aaya
    woh chatt par hoti hamari khusar-pusar
    woh ghar tak pahucha aana
    ek dooze k kapre pahana'na
    o! bachpan ki saheli kash tum milti
    sath bethte ham fir se bachpan ko jeete
    apne bachcho ke sang fir se ek dooze mai kho jate ................. thnx shobha.kuch bikhre se lafz jo hai mere pls bear it

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  2. बचपन की सहेली ,कुछ गुड की डली ,इमली की फली , जैसे फूल सी खिल कर बंद हुई कली ....शोभा जी लाजवाब ,आपने तो जैसे बचपन के बंद झरोखो को रोशनी दे दी |

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  3. लाजबाब ..लेखनी ..बचपन की मीठी सी यादे ..बहुत खूब

    हर सखी से गुजारिश ...कि अपने ब्लॉग का लिंक जरुर दे यहाँ ...ताकि हम साथ जुड सके ...आभार

    जवाब देंहटाएं

सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..